महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 95 श्लोक 1-20
पञ्चनवतितम (95) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
दुर्योधन के अनुरोध और भीष्मजी की आज्ञा से भगदत्त का घटोच्कच, भीमसेन और पाण्डवसेना के साथ घोर युद्ध
संजय कहते है- महाराज ! शत्रुओं को संताप देने वाला राज दुर्योधन उस महान युद्ध में राक्षस के द्वारा प्राप्त हुई अपनी पराजय को नहीं सह सका। उसने गंगानन्दन भीष्म जी के पास जाकर उन्हें विनीत भाव से प्रणाम करने के पश्चात सारा वृत्तान्त यथावत रूप से कह सुनाया। उस दुर्धर्ष वीर ने बार बार लम्बी साँस खींचकर घटोत्कच की विजय और अपनी पराजय की कथा सुनायी। राजन ! फिर उसने कुरूकुल के वृद्ध पितामह भीष्म से कहा- प्रभो ! जैसे मेरे शत्रु वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण का आश्रय लेकर युद्ध करते है, उसी प्रकार मैंने केवल आपका सहारा लेकर पाण्डवों के साथ भयंकर युद्ध छेड़ा है। परंतप! मेरे साथ ही मेरी ये प्रसिद्ध ग्यारहअक्षौहिणी सेनाएँ आपकी आज्ञा के अधीन है। भरतश्रेष्ठ! ऐसा शक्तिशाली होने पर भी मुझे भीमसेन आदि पाण्डवों ने घटोत्कच का सहारा लेकर युद्ध में परास्त कर दिया है। महाभाग! जैसे आग सूखे पेड़ को जलाकर भस्म कर देती है, उसी प्रकार यह अपमान मेरे अंग-अंग को दग्ध कर रहा है। शत्रुओं को संताप देने वाले पितामह ! मैं आपकी कृपा से स्वयं ही उस नीच एवं दुर्धर्ष राक्षस को मारना चाहता हूं। आपका सहारा लेकर उस पर विजयी होना चाहता हूँ। अतः आप मेरे इस मनोरथ को पूर्ण करें। भरतश्रेष्ठ ! राजा दुर्योधन का यह वचन सुनकर शान्तनुनन्दन भीष्म ने उससे इस प्रकार कहा-राजन ! कुरूनन्दन ! मैं तुमसे जो कहता हूँ, उसे ध्यान देकर सुनो। शत्रुओं को संताप देने वाले महाराज ! तुम्हें जिस प्रकार बर्ताव करना चाहिये, वह सुनो । तात् ! शत्रुदमन ! तुम युद्ध में सदा अपनी रक्षा करो। अनघ ! तुम्हें सदा धर्मराज युधिष्ठर से ही संग्राम करना चाहिये। अर्जुन, नकुल, सहदेव अथवा भीमसेन के साथ भी तुम युद्ध कर सकते हो। राजधर्म को सामने रखकर यह बात कही गयी है। राजा राजा से ही युद्ध करता है। राजन् ! तुम्हें दुरात्मा घटोत्कच के साथ कदापि युद्ध नहीं करना चाहिये। मैं, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, सात्वतवंशी, कृतवर्मा, शल्य, भूरिश्रवा, महारथी विकर्ण तथा दुःशासन आदि तुम्हारे अच्छे भ्राता- ये सब लोग तुम्हारे लिये उस महाबली राक्षस से युद्ध करेंगे। यदि उस भयंकर राक्षसराज घटोत्कच पर तुम्हारा अधिक रोष है तो उस दुष्ट के साथ युद्ध करने के लिए राजा भगदत्त जाये, क्योंकि युद्ध में ये इन्द्र के समान पराक्रमी है। इतना कहकर बोलने में कुशल भीष्म ने राजाधिराज दुर्योधन के सामने ही राजा भगदत्त से यह बात कही। महाराज ! तुम रणदुर्मद घटोत्कच का सामना करने के लिये शीघ्र जाओ और समस्त धनुर्धरों के देखते-देखते प्रयत्नपूर्वक उसे रणक्षेत्र में आगे बढ़ने से रोको। पूर्वकाल में इन्द्र ने जैसे तारकासुर की प्रगति रोक दी थी, उसी प्रकार तुम भी उस क्रूरकर्मी राक्षस को रोक दो। परंतप ! तुम्हारे पास दिव्य अस्त्र है। तुममें पराक्रम भी महान है और पूर्वकाल में बहुत से देवताओं के साथ तुम्हारा युद्ध भी हो चुका है। नृपश्रेष्ठ ! इस महायुद्ध में घटोत्कच का सामना करने वाले योद्धा केवल तुम्हीं हो। राजन्! तुम अपने ही बल से उत्कर्ष को प्राप्त होकर राक्षस शिरोमणि घटोत्कच को मार डालो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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