महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 14 श्लोक 22-39
चतुर्दश (14) अध्याय: कर्ण पर्व
भारत ! प्रतिविन्ध्य ने अपने बाणों द्वारा उसके धनुष को काटकर पाँच तीखे बाणों से चित्र को भी घायल कर दिया। महाराज ! तदननतर चित्र ने आपके पौत्रपर घोर अग्निशिखा के समान सुवर्णमय घंटों से सुशोभित एक दुर्धर्ष शक्ति चलाई। समरांगण में बड़ी भारी उल्का के समान सहसा आती हुई उस शक्ति को प्रतिविन्ध्य ने हँसते हुए से दो टुकड़ों में काट डाला। प्रतिविन्ध्य के तीखे बाणों से दो टूक होकर वह शक्ति प्रलयकाल में सम्पूर्ण प्राणियों को भयभीत करने वाली अशनि के समान गिर पड़ी। उस शक्ति को नष्ट हुई देख चित्र ने सेना की जालियों से विभूषित एक विशाल गदा हाथ में ली और उसे प्रतिविन्ध्य पर छोड़ दिया। उस गदा ने महासमर में प्रतिविन्ध्य के घोड़ों और सारथि को मार डाला और रथ भी चूर-चूर करती हुई वह बड़े वेग से पृथ्वी पर गिर पड़ी। भारत ! इसी बीच में रथ से कूदकर प्रतिविन्ध्य ने चित्र पर एक सुदवर्णमय दण्ड वाली सुसज्जित शक्ति चलायी। राजन् ! महामना राजा चित्र ने अपनी ओर आती हुई उस शक्ति को हाथ से पकड़ लिया और फिर उसी को प्रतिविन्ध्य पर दे मारा। वह अत्यन्त कान्तिमती शक्ति रणभूमि में शूरवीर प्रतिविन्ध्य को जा लगी और उसकी दाहिनी भुजा को विदीर्ण करती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी। वह जहाँ गिरी, उस स्थान को बिजली के समान प्रकाशित करने लगी। राजन् ! तब अत्यन्त क्रोध में भरे हुए प्रतिविन्ध्य ने चित्र के वध की इच्छा से उसके ऊपर एक तोमर का प्रहार किया। वह तोमर उसके कवच और वक्षस्थल को विदीर्ण करता हुआ तुरंत धरती में समा गया, जैसे कोई बड़ा सर्प बिल में घुस गया हो। तोमर से अत्यन्त आहत हो राजा चित्र अपनी परिघ के समान मोटी और विशाल भुजाओं को फैलाकर तत्काल पृथ्वी पर गिर पड़ा। चित्र को मारा गया देख संग्राम में शोभा पाने वाले आपके योद्धा प्रतिविन्ध्य पर चारों ओर से वेगपूर्वक टूट पड़े। जैसे बादल सूर्य को ढक लेते हैं, उसी प्रकार उन योद्धाओं ने नाना प्रकार के बाणों और छोटी-छोटी घंटियों सहित शतध्नियों का प्रकार करके उसे आघ्छादित कर दिया। जैसे वज्रधारी इन्द्र असुरों की सेना को खदेड़ते हैं, उसी प्रकार युद्धस्थल में महाबाहु प्रतिविन्ध्य ने अपने बाणसमूहों से उन अस्त्र-शस्त्रों को नष्ट करके आपकी सेना को मार भगाया। नरेश्वर! समरभूमि में पाण्डवों की मार खाकर आपके सैनिक हवा के उड़ाये हुए आदलों के समान सहसा छिन्न-भिन्न होकर बिखर गये। उनके द्वारा मारी जाती हुई आपकी वह सेना जब चारों ओर भागने लगी, तब अकेले अश्वत्थामा ने तुरंत ही महाबली भीमसेन पर आक्रमण कर दिया। फिर तो देवासुर-संग्राम में वृत्रासुर और इन्द्र के समान उन दोनों वीरों में सहसा घोर युद्ध छिड़ गया।
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