महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 20 श्लोक 33-47
विंशो (20) अध्याय: कर्ण पर्व
अश्वत्थामा रूपी मेघ द्वारा की हुई उस दुःसह बाण वर्षा को पाण्ड्यराज रूपी वायु ने वायव्यास्त्र से छिन्न-भिन्न करके प्रसन्न्ाता पूर्वक उड़ा दिया। उस समय द्रोणकुमार अश्वत्थामा ने बारंबार गर्जना करते हुए पाण्ड्य के मलयाचल-सदृश ऊँचे तथा चन्दन और अगुरु से चर्चित ध्वज को काटकर उनके चारों घोड़ों को भी मार डाला। फिर एक बाण से सारथि को मारकर महान् मेघ के समान गम्भीर शब्द करने वाले उनके धनुष को भी अर्धचन्द्राकार बाण के द्वारा काट दिया और उनके रथ को तिल-तिल करके नष्ट कर डाला। इस प्रकार अस्त्रों द्वारा पाण्ड्य के अस्त्रों का निवारण करके अश्वत्थामा ने उनके सारे आयुध काट डाले,तथापि युद्ध की अभिलाषा से उसने अपने वश में आये हुए शत्रु का भी वध नहीं किया। इसी बीच में कर्ण ने पाण्डवों की गजसेना पर आक्रमण किया । उस समय उसने पाण्डवों की विशाल सेना को खदेड़ना आरम्भ किया। भारत ! उसने बहुत-से रथियों को रथहीन कर दिया,हाथी सवारों और घुड़सवारों के हाथी और घोड़े मार डाले तथा झुकी हुई गाँठवाले बहुसंख्यक बाणों द्वारा कितने ही हाथियों को अत्यन्त पीडि़त कर दिया। इधर महाधनुर्धर अश्वत्थामा ने शत्रु संहारक,रथियों में श्रेष्ठ पाण्ड्य को रथहीन करके भी उनका वध इसलिए नहीं किया कि वह उनके साथ अभी युद्ध करना चाहता था। इतने ही में एक सजा-सजाया श्रेष्ठ एवं बलवान् गजराज बड़ी उतावली के साथ छूटकर प्रतिध्वनि का अनुसरण करता हुआ उधर आ निकला,उसके मालिक और महावत मारे जा चुके थे । अश्वत्थामा के बाणों से आहत होकर वह शीघ्रता पूर्वक पाण्ड्यराज की ओर दौड़ा । उसने प्रतिपक्षी हाथी की गर्जना का शब्द सुनकर बड़े वेग से उसी ओर धावा किया था। परंतु गजयुद्ध विशारद मलयध्वज पाण्ड्य नरेश पर्वत शिखर के समान ऊँचे उस श्रेष्ठ गजराज पर उतनी ही शीघ्रता से चढ़ गये,जैसे दहाड़ता हुआ सिंह किसी पहाड़ की चोटी पर चढ़ जाता है। गिरीराज मलय के स्वामी पाण्ड्यराज ने तुरंत अग्रसर होने के लिए उस हाथी को पीड़ा दी और अस्त्र-प्रहार के लिए उत्तम यत्न,बल तथा क्रोध से प्रेरित हो सूर्य के समान तेजस्वी एक तोमर हाथ में लेकर गर्जना करते हुए उसं शीघ्र ही आचार्य पुत्र पर चला दिया। उस तोमर द्वारा उन्होंने उत्तम मणि, रेष्ठ हीरक,स्वर्ण, वस्त्र,माला और मुक्ता से विभूषित अश्वत्थामा के मुकुट पर बारंबार यह कहते हुए प्रसन्नतापूर्वक आघात किया कि तुम मारे गये,मारे गये ‘। सूर्य,चन्द्रमा,ग्रह और अगग्न के समान प्रकाशमान वह मुकुट उस तोमर के गहरे आघात से चूर-चूर होकर महान् शब्द के साथ उसी प्रकार पृथ्वी पर पड़ा,जैसे इन्द्र के वज्र के आघात से किसी पर्वत का शिखर भारी आवाज के साथ धराशायी हो जाता है। तब अश्वत्थामा पैरों से ठुकराये हुए नागराज के समान शीघ्र ही अत्यन्त क्रोध से जल उठा । फिर तो उसने यमदण्ड के समान शत्रुओं को संताप देने वाले चैदह बाण हाथ में लिए। उसने पाँच बाणों से उस हाथी के पैर तथा सूँड़ काट लिये । फिर तीन बाणों से पाण्ड्य नरेश की दोनों भुजाओं और मस्तक को शरीर से अलग कर दिया । इसके बाद छः बाणों से पाण्ड्य नरेश के पीछे चलने वाले उत्तम कान्ति से सुशोभित छः महारथियों को भी मार डाला। उत्तम,विशाल,गोलाकार,श्रेष्ठ चन्द्रमा से चर्चित,सुवर्ण,मुक्ता,मणि तथा हीरों से विभूषित पाण्ड्य नरेश की वे दोनों भुजाएँ पृथ्वी पर गिरकर गरुड़ के मारे हुए दो सर्पों के समान छटपटाने लगीं।
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