महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 24 श्लोक 22-40

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:३०, १९ जुलाई २०१५ का अवतरण (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

चतुर्विंश (24) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: चतुर्विंश अध्याय: श्लोक 22-40 का हिन्दी अनुवाद

प्रजानाथ ! उस समय धनुष से छूटे हुए सौ-सौ बाणों द्वारा आच्छादित हुआ आकाश पतंगों के समूहों से भरा हुआ सा प्रतीत होता था। बारंबार गिरते हुए वे सुवर्णभूषित श्रोणिबद्ध होकर ऐसी शोभा पा रहे थे,मानो बहुत से क्रौंच पक्षी एक पंक्ति में होकर उड़ रहे हों। बाणों के जाल से आकाश और सूर्य के ढक जाने पर अन्तरिक्ष की कोई भी वस्तु उस समय पृथ्वी पर नहीं गिरती थी। बाणों के समूह से वहाँ सब ओर का मार्ग अवरुद्ध हो जाने पर वे दोनों महामनस्वी वीर नकुल और कर्ण प्रलयकाल में अदित हुए दो सूर्यों के समान प्रकाशित हो रहे थे। राजेन्द्र ! कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों की मार खाकर सोमक-योद्धा वेदना से कराह उठे और अत्यन्त पीडि़त हो इधर-उधर छिपने लगे। राजन् ! नकुल के बाणों से मारी जाती हुई आपकी सेना भी हवा से उड़ाये गये बादलों के समान सम्पूर्ण दिशाओं में बिखर गयी। उन दोनों के दिव्य महाबाणों द्वारा आहत होती हुई दोनों सेनाएँ उस समय उनके बाणों के गिरने के स्थान से दूर हटकर खड़ी हो गयीं और दर्शक बनकर तमाशा देखने लगीं। कर्ण और नकुल के बाणों द्वारा अब सब लोग वहाँ से दूर हटा दिये गये,तब वे दोनों महामनस्वी वीर अपने बाणों की वर्षा से एक दूसरे को चोट पहुँचाने लगे। युद्ध के मुहाने पर वे दोनों दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन करते हुए एक दूसरे को मार डालने की इच्छा से सहसा बाणों द्वारा आच्छादित करने लगे। नकुल के बाणों में कंक और मयूर के प्रख लगे हुए थे। वे उनके धनुष से छूटकर सूतपुत्र को आच्छादित करके जिस प्रकार आकाश में स्थित होते थे,उसी प्रकार उस महासमर में सूतपुत्र के चलाये बाण हुए पाण्डु कुमार नकुल को आच्छादित करके आकाश में छा जाते थे। राजन् ! मेघों द्वारा ढक जाने पर सूर्य और चन्द्रमा दिखाई नहीं देते,उसी प्रकार बाण निर्मित भवन में प्रविष्ट हुए उन दोनों वीरों पर किसी की दृष्टि नहीं पड़ती थी। तदनन्तर क्रोध में भरे हुए कर्ण ने रणभूमि में अत्यन्त भयंकर स्वरूप प्रकट करके चारों ओर से बाणों की वर्षा द्वारा पाण्डुपुत्र नकुल को ढक दिया। महाराज ! सूतपुत्र के द्वारा अत्यन्त आच्छन्न कर दिये जाने पर भी बादलों से ढके हुए सूर्य के समान नकुल ने अपने मन में तनिक भी व्यथा का अनुभव नहीं किया। मान्यवर ! तत्पश्चात् सूतपुत्र ने बड़े जोर से हँसकर पुनः समरांगण में बाणों के जाल बिछा दिये। उसने सैंकड़ों और हजारों बाण चलाये। उस महामनस्वी वीर के गिरते हुए उत्तम बाणों से घिर जाने के कारण वहाँ सब कुछ एक मात्र अन्धकार में निमग्न हो गया। ठीक उसी तरह,जैसे बादलों की घोर घटा घिर आने पर सब ओर अँधेरा छा जाता है। महाराज ! तदनन्तर हँसते हुए से कर्ण ने महामना नकुल का धनुष काअकर उनके सारथि को रथ की बैठक से मार गिराया। भारत ! फिर चार तीखे बाणों से उनके चारों घोड़ों को भी तुरंत ही यमराज के घर भेज दिया। मान्यवर ! इसके बाद उसने अपने बाणों द्वारा नकुल के उस दिव्य रथ को तिल-तिल करके काट दिया और पताका,चक्ररक्षकों,गदा एवं खंग को भी छिन्न-भिन्न कर दिया। साथ ही सौ चन्द्राकार चिन्हों से सुशोभित उनकी ढाल तथा अन्य सब उपकरणों को भी नष्ट कर दिया।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।