महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 162 श्लोक 22-43

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द्विषष्ट्यधिकशततम (162) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्विषष्ट्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-43 का हिन्दी अनुवाद

इसके बाद महारथी महाबली सोमदत्त ने दूसरा धनुष लेकर सात्यकि को बाणों की वर्षा से ढक दिया। उस युद्ध में क्रुद हुए सात्यकिने सोमदत्त को गहरी चोट पहुँचायी और सोमदत्त ने भी अपने बाणसमूह द्वारा सात्यकि को पीडि़त कर दिया। उस समय भीमसेन ने सात्यकिकी सहायता के लिये सोमदत्त को दस बाण मारे। इससे सोमदत्त को तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उन्होंने भी तीखे बाणों से भीमसेन को पीडि़त कर दिया। तत्पश्चात् सात्यकिकी ओर से भीमसेन ने सोमदत्त की छाती को लक्ष्य करके एक नूतन सुदृढ़ एवं भयंकर परिघ छोड़ा।। समरागंण में बड़े वेग से आते हुए उस भयंकर परिघ के कुरूवंशी सोमदत्त ने हँसते हुए से दो टुकडे़ कर डाले। लोहे का वह महान् परिघ दो खण्डों में विभक्त होकर वज्र से विदीर्ण किये गये महान् पर्वत शिखर के समान पृथ्वी पर गिर पड़ा। राजन्! तदनन्तर संग्राम भूमि में सात्यकिने एक भल्ल से सोमदत्त का धनुष काट दिया और पाँच बाणों से उनके दस्ताने नष्ट कर दिये। भारत! फिर तत्काल ही चार बाणों से उन्होंने सोमदत्त के उन उत्तम घोड़ों को प्रेतराज यम के समीप भेज दिया। इसके बाद पुरूषसिंह शिनिप्रवर सात्यकि ने हँसते हुए झुकी हुई गाँठवाले भल्ल से सोमदत्त के सारथि का सिर धड़ से अलग कर दिया। राजन्! तत्पश्चात् सात्वतवंशी सात्यकिने प्रज्वलित पावक के समान एक महाभयंकर, सुवर्णमय पंखवाला और शिला पर तेज किया हुआ बाण सोमदत्त पर छोड़ा। भरतनन्दन! प्रभो! शिनिवंशी बलवान् सात्यकिके द्वारा छोड़ा हुआ वह श्रेष्ठ एवं भयंकर बाण शीघ्र ही सोमदत्त की छाती पर जा पड़ा। महाराज! सात्यकि के चलाये हुए उस बाण से अत्यन्त घायल होकर महारथी महाबाहु सोमदत्त पृथ्वी पर गिरे और मर गये। सोमदत्त को मारा गया देख आपके बहुसंख्यक महारथी बाणों की भारी वृष्टि करते हुए वहाँ सात्यकि पर टूट पडे़। महाराज! उस समय सात्यकि को बाणों द्वारा आच्छादित होते देख युधिष्ठिर तथा अन्य पाण्डवों ने समस्त प्रभद्रकोंसहित विशाल सेना के साथ द्रोणाचार्य की सेना पर धावा किया। तदनन्तर क्रोध में भरे हुए राजा युधिष्ठिर ने अपने बाणों की मार से आपकी विशाल वाहिनी को द्रोणाचार्य के देखते-देखते खदेड़ना आरम्भ किया। द्रोणाचार्य ने देखा कि युधिष्ठिर मेरे सैनिकों को खदेड़ रहे हैं, तब वे क्रोध से लाल आँखें करके बडे़ वेग से उनकी ओर दौडे़। फिर उन्होंने सात तीखे बाणों से कुन्तीकुमार युधिष्ठिर को घायल कर दिया। अत्यन्त क्रोध में भरे हुए युधिष्ठिर ने भी उन्हें पाँच बाधों से बींधकर बदला चुकाया। तब अत्यन्त घायल हुए महाबाहु द्रोणाचार्य अपने दोनों गलफर चाटने लगे। उन्होंने युधिष्ठिर के ध्वज और धनुष को भी काट दिया। शीघ्रता के समय शीघ्रता करने वाले नृपश्रेष्ठ युधिष्ठिर ने समरागंण में धनुष कट जाने पर दूसरे सुदृढ़ धनुष को वेगपूर्वक हाथ में ले लिया। फिर सहस्त्रों बाणों की वर्षा करके राजा ने घोड़े, सारथि, रथ और ध्वजसहित द्रोणाचार्य को बींध डाला। वह अद्भुत सा कार्य हुआ। भरतश्रेष्ठ! उन बाणों के आघात से अत्यन्त पीड़ित एवं व्यथित होकर द्रोणाचार्य दो घड़ी तक रथ के पिछले भाग में बैठे रहे। तत्पश्चात् सचेत होने पर द्विजश्रेष्ठ द्रोण ने महान् क्रोध में भरकर वायव्यास्त्र का प्रयोग किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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