महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 188 श्लोक 17-20
अष्टाशीत्यधिकशततम (188) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टाशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-20 का हिन्दी अनुवाद
जो इस सारी सृष्टि को परब्रह्म परमात्मा का रूप नहीं जानते हैं, वे द्विज कहलाने के अधिकारी नहीं हैं। ऐसे लोगों को नाना प्रकार की दूसरी–दूसरी योनियों में जन्म लेना पड़ता है। वे ज्ञान–विज्ञान से हीन और स्वेच्छाचारी लोग पिशाच, राक्षस, प्रेत तथा नाना प्रकार की म्लेच्छ-जाति के होते हैं। पीछे से ॠषियों ने अपनी तपस्या के बल से कुछ ऐसी प्रजा उत्पन्न की, जो वैदिक संस्कारों से सम्पन्न तथा अपने धर्म–कर्म में दृढ़तापूर्वक डटी रहने वाली थी। इस प्रकार प्राचीन ॠषियों द्वारा अर्वाचीन ॠषियों की सृष्टि होने लगी। किंतु जो सृष्टि आदि देव ब्रह्माके मन से उत्पन्न हुई है, जिसके जड़–मूल केवल ब्रह्माजी ही हैं तथा जो अक्षय, अविकारी एवं धर्म में तत्पर रहने वाली है, वह सृष्टि मानसी कहलाती है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में भृगु–भरद्वाज के प्रसंग में वर्णों के विभाग का वर्णन विषयक एक सौ अट्ठासीवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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