महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 93 श्लोक 1-20

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १३:१५, १९ जुलाई २०१५ का अवतरण (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}")
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

त्रिनवतितम (93) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: त्रिनवतितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

घटोत्‍कच की रक्षा के लिए आये हुए भीम आदि शूरवीरों के साथ कौरवों का युद्ध और उनका पलायन

संजय कहते हैं-भरतश्रेष्ठ ! वह राक्षस युद्धस्थल में आपके समस्त सैनिकों को संग्राम से विमुख करके दुर्योधन को मार डालने की इच्छा रखकर उसकी ओर दौड़ा। उसे राजा दुर्योधन की ओर बड़े वेग से आते देख आपके रणदुर्मद पुत्र और सैनिक मार डालने की इच्छा से उसकी ओर दौड़े। उन सभी महारथियों ने चार-चार हाथ में धनुष खींचते हुए और सिंहों के समुदाय की भाँति गर्जना करते हुए उस एक मात्र योद्धा घटोत्कच पर धावा किया। जैसे शरदऋतु में बादल पर्वत के शिखर पर जल की धाराएँ गिराते हैं, उसी प्रकार उन सब कौरव वीरों में चारों ओर से घटोत्कच पर बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। उस समय उन बाणों के गहरे आघात से वह अंकुश की मार खाये हुए हाथी की भाँति व्यथित हो उठा और तुरंत ही गरूड़ के समान आकाश में सब ओर उड़ने लगा। आकाश में स्थित होकर शरदऋतु के बादल की भाँति वह अपने भयंकर स्वर से अन्तरिक्ष, दिशाओं तथा विदिशाओं को गुँजाता हुआ जोर-जोर से गर्जना करने लगा। भरतश्रेष्ठ ! राक्षस घटोत्कच की उस गर्जना को सुनकर राजा युधिष्ठर ने शत्रुदमन भीमसेन से इस प्रकार कहा-राक्षस घटोत्कच कौरव महारथियों से निश्चय ही युद्ध कर रहा है। भैरवनाद करते हुए उस राक्षस का जैसा शब्द सुनायी देता है, उससे यहीं जान पड़ता है। मैं उस राक्षस शिरोमणि पर बहुत बड़ा भार देख रहा हूं। उधर पितामह भीष्म भी अत्यन्त क्रोध में भरकर पाचालों को मार डालने के लिए उद्यत है। उनकी रक्षा के लिए अर्जुन शत्रुओं से युद्ध करते है। महाबाहो ! अपने ऊपर दो कार्य उपस्थित है, ऐसा जानकर तुम जाओ और अत्यन्त संशय में पड़े हुए हिडिम्बाकुमार की रक्षा करो। भाई की यह आज्ञा मानकर भीमसेन सिंहनाद से सम्पूर्ण नरेशों को भयभीत करते हुए बड़ी उतावली के साथ वहाँ से चल दिये। राजन् ! जैसे पूर्णिमा को समुद्र बडे़ वेग से बढ़ता है, उसी प्रकार भीमसेन अत्यन्त वेग से आगे बढ़े। उनके पीछे सत्यधृति, रंगदुर्मद सौचित्ति, श्रेणिमान्, वसुदान, काशि राज के पुत्र अमिभू, अभिमन्यु आदि योद्धा, द्रौपदी के पाँच महारथी पुत्र, पराक्रमी क्षत्रदेव, क्षत्रधर्मा, अनूपदेश के राजा नील, जिन्हें अपने बल का पूरा भरोसा था- इन सब वीरों ने विशाल रथ सेना के साथ हिडिम्बाकुमार घटोत्कच को सब ओर से घेर लिया। सदा उन्मत्त रहने वाले, प्रहारकुशल छः हजार गजराजों के साथ आकर उपर्युक्त वीरों ने एक साथ ही राक्षसराज घटोत्कच की रक्षा की। वे महान सिंहनाद, रथ के पहियों की घरघराहट और घोड़ों की टाप पड़ने से होने वाले महान शब्द के द्वारा वसुधा को कम्पित कर रहे थे। उन सबके आने से जो कोलाइल हुआ, उसे सुनकर भीमसेन के भय से उद्धिग्न हुए आपके सैनिकों का मुख उदास हो गया। महाराज ! उस समय रक्षकों द्वारा सब ओर से घिरे हुए घटोत्कच को छोड़कर संग्राम में कभी पीठ न दिखाने वाले आपके तथा शत्रुपक्ष के महामनस्वी योद्धाओं में भारी युद्ध छिड़ गया। नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को छोड़ते और एक-दूसरे की और दौड़ते हुए उभय पक्ष के महारथी भीष्म युद्ध करने लगे।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।