महाभारत वन पर्व अध्याय 313 श्लोक 114-128
त्रयोदशाधिकत्रिशततम (313) अध्याय: वन पर्व (आरणेयपर्व)
यक्ष ने पूछा- सुखी कौन है ? आश्चर्य क्या है ? मार्ग क्या है तथा वार्ता क्या है ? मरम इन चार प्रश्नों का उत्तर देकर जल पीओ।
युधिष्ठिर बोले- जलचर यक्ष ! जिस पुरुष पर ऋण नहीं बचे हुए हैं और जो परदेश में नहीं है, वह भले ही पाँचवें या छठे दिन अपने घर के भीतर साग-भात ही पकाकर खाता हो, तो भी वही सुखी है। संसार से रोज-रोज प्रणी यमलोक में जा रहे हैं; किंतु जो बचे हुए हैं, वे सर्वदा जीते रहने की इच्छा करते हैं; इससे बढ़कर आश्चर्य और क्या होगा ? तर्क कहीं सिथत नहीं है, श्रुतियाँ भी भिन्न-भिन्न हैं, एक ही ऋषि नहीं है कि जिसका मत प्रमाण माना जाय तथा धर्म का तत्त्व गुहा में निहित है अर्थात् अत्यन्त गूढ़ है; अतः जिससे महापुरुष जाते रहे हें, वही मार्ग है।
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इस महामोहरूपी कड़ाहे में भगवान् काल समसत प्राणियों को मास और ऋतुरूप करछी से उलट-पलटकर सूर्यरूप अग्नि और रात-दिनरूप ईंधन के द्वारा राँध रहे हैं, यही वार्ता है।
यक्ष ने पूछा- परंतप ! तुमने मेरे सब प्रश्नों के उत्तर ठीक-ठीक दे दिये, अब तुम पुरुष की भी व्याख्या कर दो और यह बाताओ कि सबसे बड़ा धनी कौन है ?
युधिष्ठिर बोले- जिस व्यक्ति क पुण्य कर्मों की कीर्ति का शब्द जब तक स्वर्ग और भूमि को स्पर्श करता है, तब तक वह पुरुष कहलाता है। जो मनुष्य प्रिय-अप्रिय, सुख-दुःख और भूत-भविष्यत् इन द्वन्द्वों में सम है, वही सबसे बड़ा धनी है। जो भूत, वर्तमान और भविष्य सभी विषयों की ओर से निःस्पृह, शान्तचित्त, सुप्रसन्न और सदा योगयुक्त है, वही सब धनियों का स्वामी है।
यक्ष ने कहा- राजन् ! जो सबसे बढ़कर धनी पुरुष है, उसकी तुमने ठीक-ठीक व्याख्या कर दी; इसलिये अपने भाइयों में से जिस एक को तुम चाहो, वही जीवित हो सकता है।
युधिष्ठिर बोले- यक्ष ! यह जो श्यामवर्ण, अरुणनयन, सुविशाल शालवृक्ष के समान ऊँचा और चैड़ी छाती वाला महाबाहु नकुल है, वही जीवित हो जाय।
यक्ष ने कहा- राजन् ! यह तुम्हारा पिंय भीमसेन है और यह तुुम लोगों का सबसे बड़ा सहारा अर्जुन है; इन्हें छोड़कर तुम किसलिये सौतेले भाई नकुल को जिलाना चाहते हो ? जिसमें दस हजार हाथियों के समान बल है, उस भीम को छोड़कर तुम नकुल को ही क्यों जिलाना चाहते हो ? सभी मनुष्य भीेमसेन को तुम्हारा प्रिय बतलाते हैं; उसे छोड़कर भला सौतेले भाई नकुल में तुम कौन सा सामथ्र्य देखकर उसे जिलाना चाहते हो ? जिसके बाहुबल का सभी पाण्डवों को पूरा भरोसा है, उसए अर्जुन को भी छोड़कर तुम्हें नकुल को जिला देने की इच्छा क्यों है ?
युधिष्ठिर बोले- यदि धर्म का नाश किया जाय, तो वह नष्ट हुआ धर्म ही कर्ता को भी नष्ट कर देता है और यदि उसकी रक्षा की जाय, तो वही कर्ता की भी रक्षा कर लेता है। इसी से मैं धर्म का त्याग नहीं करता कि कहीं नष्ट होकर वह धर्म मेरा ही नाश न कर दे।
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