महाभारत वन पर्व अध्याय 313 श्लोक 67-81

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त्रयोदशाधिकत्रिशततम (313) अध्याय: वन पर्व (आरणेयपर्व)

महाभारत: वन पर्व: त्रयोदशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः श्लोक 67-81 का हिन्दी अनुवाद


यक्ष ने पूछा- अकेला कौन विचरता है ? एक बार उत्पन्न होकर पुनः कौन उत्पन्न होता है ? शीत की औषधि क्या है ? और महान् आवपन (क्षेत्र) क्या है ? युधिष्ठिर बोले- सूर्य अकेला विचरता है, चन्द्रमा एक बार जन्म लेकर पुनः जन्म लेता है, अग्नि शीत की औषधि है और पृथ्वी बड़ा भारी आवपन है। यक्ष ने पूछा- धर्म का मुख्य स्थान क्या है ? यश का मुख्य स्थान क्या है ? स्वर्ग का मुख्य स्थान क्या है ? और सुख का मुख्य स्थान क्या है ? 1830 युधिष्ठिर बोले- धर्म का मुख्य स्थान दक्षता है, यश का मुख्य स्थान दान है, स्वर्ग का मुख्य स्थान सत्य है और सुख का मुख्य स्थान शील है। यक्ष ने पूछा- मनुष्य की आत्मा क्या है ? इसका दैवकृत सखा कौन है ? इसका उपजीवन (जीवन का सहारा) क्या है ? और इसका परम आश्रय क्या है ? और इसका परम आश्रय क्या है ? युधिष्ठिर बोले- पुत्र मनुष्य की आत्मा है, स्त्री इसकी दैवकृत सहचरी है, मेघ उपजीवन है और दान इसका परम आश्रय है। यक्ष ने पूछा- धन्यवाद के योग्य पुरुषों में उत्तम गुण क्या है ? धनों में उत्तम धन क्या है ? लाभों में प्रधान लाभ क्या है ? और सुखों में उत्तम सुख क्या है ? युधिष्ठिर बोले- धन्य पुरुषों में दक्षता ही उत्तम गुण है, धनों में शास्त्रज्ञान प्रधान है? लाभों में आरोग्य श्रेष्ठ है और सुखों में संतोष ही उत्तम सुख है। यक्ष ने पूछा- लोक में श्रेष्ठ कर्म क्या है , नित्य फल वाला धर्म क्या है ? किसको वश में रखने से मनुष्य शोक नहीं करते , और किनके साथ की हुई मित्रता नष्ट नहीं होती ? युधिष्ठिर बोले- लोक में दया श्रेष्ठ धर्म है, वेदोक्त धर्म नित्य फलवाला है, मन को वश में रखने से मनुष्य शोक नहीं करते और सत्पुरुषों के साथ की हुई मित्रता नष्ट नहीं होती। यक्ष ने पूछा- किस वस्तु को त्यागकर मनुष्य प्रिय होता है ? किसको त्यागकर शोक नहीं करता , किसको त्यागकर वह अर्थवान होता है ? और किसको त्यागकर सुखी होता है ? युधिष्ठिर बोले- मान को त्याग देने पर मनुष्य प्रिय होता है, क्रोध को त्यागकर शोक नहीं करता, काम को त्यागकर वह अर्थवान् होता है और लोभ को त्यागकर सुखी होता है। यक्ष ने पूछा- ब्राह्मण को क्यों दान दिया जाता हैं ? नट और नर्तकों को क्यों दान देते हैं ? सेवकों को दान देने का क्या प्रयोजन है ? और राजाओं को क्यों दान दिया जाता है ? युधिष्ठिर बोले- ब्राह्मण को धर्म के लिये दान दिया जाता हैं , नट और नर्तकों को यश के लिये दान (धन) देते हैं सेवकों को उनके भरण-पोषण के लिये दान (वेतन) दिया जाता है और राजाओं को भय के कारण दान (कर) देते हैं। यक्ष ने पूछा- जगत् किस वस्तु से ढका हुआ है ? 1831 किसके कारण वह प्रकाशित नहीं होता ? मनुष्य मित्रों को किसलिये त्याग देता है ? और स्वर्ग में किस कारण नहीं जाता है ?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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