महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 90 श्लोक 36-41
नवतितम (90) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
क्षत्रिय के प्रमाद से बड़े-बडे़ दोष प्रकट होते हैं। वर्णसंकरों को जन्म देने वाले पापकर्मी की वृद्धि होती है। गर्मी के मौसम में सर्दी और सर्दी के मौसम में गर्मी पड़ने लगती हैं। कभी सूखा पड़ जाता है, कभी अधिक वर्षा होती है तथा प्रजा में नाना प्रकार के रोग फैल जाते हैं । आकाश में भयानक ग्रह और धूमकेतु आदि तारे उगते हैं तथा राष्ट्र के विनाश की सूचना देने वाले बहुत से उत्पात दिखायी देने लगते हैं। जो राजा अपनी रक्षा नहीं करता, वह प्रजाकी भी रक्षा नहीं कर सकता। पहले उसकी प्रजाएँ क्षीण होती हैं; उस समय इन सारे अपराधों पर बलात्कार होने लगता है, उस समय इन सारे अपराधों का कारण राजा को ही बताया जाता है। जब दो मनुष्य मिलकर एक की वस्तु छीन लेते है, बहुत से मिलकर दो को लुटते है तथा कुमारी कन्याओं पर बलात्कार होने लगता है। उस समय इन सारे अपराधों का कारण राजा को ही बताया जाता है। जब राजा धर्म छोड़कर प्रमादमें पड़ जाता है, तब मनुष्यों में से एक भी अपने धन को ‘यह मेरा है’ ऐसा समझकर स्थिर नहीं रह सकता।
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