महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 204 श्लोक 16-20

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:३५, २० जुलाई २०१५ का अवतरण ('==चतुरधिकद्विशततम (204) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

चतुरधिकद्विशततम (204) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: चतुरधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 16-20 का हिन्दी अनुवाद

इन्द्रिय द्वारा विषयों करे ग्रहण न करने से पुरूष के वे विषय तो निवृत्‍त हो जाते है; परंतु उनमे उनकी आसक्ति बनी रहती है । परमात्‍मा का साक्षात्‍कार कर लेनेपर पुरूष की वह आ‍सक्ति भी दूर हो जाती है। जिस समय बुद्धि कर्मजनित गुणों से छूटकर हृदय मे स्थित हो जाती है, उस समय जीवात्‍मा ब्रह्मा में लीन होकर ब्रह्मा को प्राप्‍त हो जाता है। परब्रह्मा परमात्‍मा स्‍पर्श, श्रवण, रसन, दर्शन, घ्राण और संकल्‍प विकल्‍प से भी रहित है; इसलिये केवलविशुद्ध बुद्धि ही उसमें प्रवेंश कर पाती है। मन में शब्‍दादि विषयरूप समस्‍त आकृतियों का लय होता है । मन का बुद्धि में, बुद्धि का ज्ञान में और ज्ञान का परमात्‍मा में लय होता है। इन्द्रियों द्वारा मन की सिद्धि नहीं होती अर्थात इन्द्रियॉ मन को नहीं जानती हैं । मन बुद्धि को नहीं जानता और बुद्धि सूक्ष्‍म एवं अव्‍यक्‍त आत्‍मा को नहीं जानती है; किंतु अव्‍यक्‍त आत्‍मा इन सबको देखता और जानता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्म पर्व में मनु बृहस्‍पति का संवाद विषयक दो सौ चारवॉ अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।