महाभारत शल्य पर्व अध्याय 30 श्लोक 61-67
त्रिंश (30) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
‘ये विजय से उल्लासित होने वाले पाण्डव बड़े हर्ष में भरकर इधर ही आ रहे हैं। अतः हम लोग यहां से हट जायंगे। इसके लिये तुम हमें आज्ञा प्रदान करो’ । प्रभो ! उन वेगशाली वीरों की वह बात सुनकर दुर्योधन ने ‘तथास्तु’ कहकर उस सरोवर के जल को पुनः माया द्वारा स्तम्भित कर दिया । महाराज ! राजा की आज्ञा लेकर अत्यन्त शोक में डूबे हुए कृपाचार्य आदि महारथी वहां से दूर चले गये । मान्यवर ! दूर के मार्ग पर जाकर उन्हें एक बरगद का वृक्ष दिखायी दिया। वे अत्यन्त थके होने के कारण राजा दुर्योधन के विषय में चिन्ता करते हुए उसी के नीचे बैठ गये । इधर महाबली धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन पानी बांधकर सो गया। इतने ही में युद्ध की अभिलाषा रखने वाले पाण्डव भी वहां आ पहुंचे । राजन् ! उधर कृपाचार्य आदि महारथी रथों से घोड़ों को खोल कर यह सोचने लगे कि ‘अब युद्ध किस तरह होगा ? राजा दुर्योधन की क्या दशा होगी और पाण्डव किस प्रकार कुरुराज दुर्योधन का पता पायेंगे’ ऐसी चिन्ता करते हुए वे वहां बैठ कर आराम करने लगे ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में तीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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