श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 6 श्लोक 11-24
दशम स्कन्ध: षष्ठ अध्याय (पूर्वार्ध)
अब तो पूतना के प्राणों के आश्रयभूत सभी मर्मस्थान फटने लगे। वह पुकारने लगी—‘अरे छोड़ दे, छोड़ दे, अब बस कर।’ वह बार-बार अपने हाथ और पैर पटक-पटककर रोने लगी। उसके नेत्र उलट गये। उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ हो गया । उसकी चिल्लाहट का वेग बड़ा भयंकर था। उसके प्रभाव से पहाड़ों के साथ पृथ्वी और ग्रहों के साथ अन्तरिक्ष डगमगा उठा। सातों पाताल और दिशाएँ गूँज उठीं। बहुत-से लोग वज्रपात की आशंका से पृथ्वी पर गिर पड़े । परीक्षित्! इस प्रकार निशाचरी पूतना के स्तनों में इतनी पीड़ा हुई कि वह अपने को छिपा न सकी, राक्षसीरूप में प्रकट हो गयी। उसके शरीर से प्राण निकल गये, मुँह फट गया, बाल बिखर गये और हाथ-पाँव फ़ैल गये। जैसे इन्द्र के वज्र से घायल होकर वृत्रासुर गिर पड़ा था, वैसे ही वह बाहर गोष्ठ में आकर गिर पड़ी ।
राजेन्द्र! पूतना के शरीर ने गिरते-गिरते भी छः कोस के भीतर के वृक्षों को कुचल डाला। यह बड़ी ही अद्भुत घटना हुई । पूतना का शरीर बड़ा भयानक था, उसका मुँह हल के समान तीखी और भयंकर दाढ़ों से युक्त था। उसके नथुने पहाड़ की गुफ़ा के समान गहरे थे और स्तन पहाड़ से गिरी हुई चट्टानों की तरह बड़े-बड़े थे। लाल-लाल बाल चारों ओर बिखरे हुए थे । आँखे अंधे कुएँ के समान गहरी नितम्ब नदी के करार की तरह भयंकर; भुजाएँ, जाँघें और पैर नदी के पुल के समान तथा पेट-सूखे हुए सरोवर की भाँति जान पड़ता था । पूतना के उस शरीर को देखकर सब-के-सब ग्वाल और गोपी डर गये। उसकी भयंकर चिल्लाहट सुन्दर उनके ह्रदय, कान और सर तो पहले ही फट-से रहे थे । जब गोपियों ने देखा कि बालक श्रीकृष्ण उसकी छाती पर निर्भय होकर खेल रहे हैं, तब वे बड़ी घबराहट और उतावली के साथ झटपट वहां पहुँच गयीं तथा श्रीकृष्ण को उटाह लिया ।
इसके बाद यशोदा और रोहिणी के साथ गोपियों ने गाय की पूँछ घुमाने आदि उपायों से बालक श्रीकृष्ण के अंगों को सब प्रकार से रक्षा की । उन्होंने पहले बालक श्रीकृष्ण को गोमूत्र से स्नान कराया, फिर सब अंगों में गो-रज लगायीं और फिर बारहों अंगों में गोबर लगाकर भगवान् के केशव आदि नामों से रक्षा की । इसके बाद गोपियों ने आचमन करके ‘अज’ आदि ग्यारह बीज-मन्त्रों से अपने शरीर में अलग-अलग अंगन्यास एवं करन्यास किया और फिर बालक के अंगों में बीजन्यास किया । वे कहने लगीं—‘अजन्मा भगवान् तेरे पैरों की रक्षा करें, मणिमान् घुटनों की, यज्ञपुरुष जाँघों की, अच्युत कमर की, हयग्रीव पेट की, केशव ह्रदय की, ईश वक्षःस्थल की, सूर्य कन्ठ की, विष्णु बाँहों की, उरुक्रम मुख की और ईश्वर सिर की रक्षा करें । चक्रधर भगवान् रक्षा के लिए तेरे आगे रहें, गदाधारी श्रीहरि पीछे, क्रमशः धनुष और खड्ग धारण करने वाले भगवान् मधुसूदन और अजन दोनों बगल में, शंखधारी उरुगाय चारों कोनों में, उपेन्द्र ऊपर, हलधर पृथ्वी पर और भगवान् परमपुरुष तेरे सब ओर रक्षा के लिये रहें । हृशीकेशभगवान् इन्द्रियों की और नारायण प्राणों की रक्षा करें। श्वेतद्वीप के अधिपति चित्त की और योगेश्वर मन की रक्षा करें ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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