महाभारत शल्य पर्व अध्याय 57 श्लोक 19-36
सप्तपन्चाशत्तम (57) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
कभी वेग से एक-दूसरे के सामने जाते, कभी विरोधी को गिराने की चेष्टा करते, कभी स्थिर भाव से खड़े होते, कभी गिरे हुए शत्रु के उठने पर पुनः उसके साथ युद्ध करते, कभी विरोधी पर प्रहार करने के लिये चक्कर काटते, कभी शत्रु के बढ़ाव को रोक देते, कभी विपक्षी के प्रहार को विफल करने के लिये झुककर निकल जाते, कभी उछलते-कूदते, कभी निकट आकर गदा का प्रहार करते और कभी लौटकर पीछे की ओर किये हुए हाथ से शत्रु पर आघात करते थे। दोनों ही गदा युद्ध के विशेषज्ञ थे और इस प्रकार पैंतरे बदलते हुए एक दूसरे पर चोट करते थे । कुरुकुल के वे दोनों श्रेष्ठ ओर बलवान् वीर विपक्षी को चकता देते हुए बारंबार युद्ध के खेल दिखाते तथा पैंतरे बदलते थे । समरागंण में सब ओर युद्ध की क्रीड़ा का प्रदर्शन करते हुए उन दोनों शत्रुदमन वीरों ने सहसा अपनी गदाओं द्वारा एक दूसरे पर प्रहार किया । महाराज ! जैसे दो हाथी अपने दांतों से परस्पर प्रहार करके लहू-लुहान हो जाते हैं, उसी प्रकार वे दोनों एक दूसरे पर चोट करके खून से भीगकर शोभा पाने लगे । शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश ! इस प्रकार दिन की समाप्ति के समय उन दोनों वीरों में वृत्रासुर और इन्द्र के समान क्रूरतापूर्ण एवं भयंकर युद्ध होने लगा । राजन् ! दोनों ही हाथ में गदा लेकर मण्डलाकार युद्ध स्थल में खड़े थे। उन में से बलवान् दुर्योधन दक्षिण मण्डल में खड़ा था और भीमसेन बायें मण्डल में । महाराज ! युद्ध के मुहाने पर वाममण्डल में विचरते हुए भीमसेन की पसली मे दुर्योधन ने गदा मारी । भरतनन्दन ! आपके पुत्र द्वारा आहत किये गये भीमसेन उस प्रहार को कुछ भी न गिनते हुए अपनी भारी गदा घुमाने लगे । राजेन्द्र ! दर्शकों ने भीमसेन की उस भयंकर गदा को इन्द्र के वज्र और यमराज के दण्ड के समान उठी हुई देखा । शत्रुओं को संताप देने वाले आपके पुत्र दुर्योधन ने भीमसेन को गदा घुमाते देख अपनी भयंकर गदा उठाकर उनकी गदा पर दे मारी । भारत ! अपके पुत्र की वायुतुल्य गदा के वेग से उस गदा के टकराने पर बडे जोर का शब्द हुआ और दोनों गदाओं से आग की चिनगारियां छूटने लगी । नाना प्रकार के मागा और भिन्न-भिन्न मण्डलों से विचरते हुए तेजस्वी दुर्योधन की उस समय भीमसेन से अधिक शोभा हुई । भीमसेन के द्वारा सम्पूर्ण वेग से घुमायी गयी वह विशाल गदा उस समय भयंकर शब्द करती हुई धूम और ज्वालाओं सहित आग प्रकट करने लगी । भीमसेन के द्वारा घुमायी गयी उस गदा को देखकर दुर्योधन भी अपनी लोहमयी भारी गदा को घुमाता हुआ अधिक शोभा पाने लगा । उस महामनस्वी वीर की वायुतुल्य गदा के वेग को देख कर सोमकों सहित समस्म पाण्डवों के मन में भय समा गया । समरांगण में सब ओर युद्ध की क्रीडा का प्रदर्शन करते उन दोनों शत्रुदमन वीरों ने सहसा अपने गदाओं द्वारा एक-दूसरे पर प्रहार किया । महाराज ! जैसे दो हाथी अपने दांतों से परस्पर प्रहार करके लहू-लुहान हो जाते है, उसी प्रकार वे दोनों एक दूसरे पर चोट करके खून से लथपथ हो अदभुत शोभा पाने लगे ।
« पीछे | आगे » |