महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 160 श्लोक 64-83

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Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:४४, २५ जुलाई २०१५ का अवतरण
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षष्‍टयधिकशततम (160) अध्‍याय: उद्योग पर्व (उलूकदूतागमन पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: षष्‍टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 64-83 का हिन्दी अनुवाद

‘उलूक ! उस बिना मूँछोंके मर्द (अथवा बोझ ढोने वाले बैल), अधिक खानेवाले, अज्ञानी और मूर्ख भीमसेनसे भी बारम्‍बार मेरा यह संदेश कहना ‘कुन्‍तीकुमार ! पहले विराटनगरमें जो तू रसोइया बनकर रहा और बल्‍लवके नाम से विख्‍यात हुआ, वह सब मेरा ही पुरूषार्थ था। पहले कौरवसभामें तूने जो प्रतिज्ञा की थी, वह मिथ्‍या नहीं होनी चाहिये। यदि तुझमें शक्ति हो तो आकर दुशासनका रक्‍त पी लेना। कुन्‍तीकुमार ! तुम जो कहा करते हो कि मैं युद्धमें धृतराष्‍ट्र के पुत्रोंको वेगपूर्वक मार डालूंगा, उसका यह समय आ गया है । भारत ! तुम निरे भोजनभट्ट हो। अत: अधिक खाने पीनेमें पुरस्‍कार पानेके योग्‍य हो। किंतु कहां युद्ध और कहां भोजन शक्ति हो तो युद्ध करो और मर्द बनो। भारत ! युद्धभूमिमें मेरे हाथसे मारे जाकर तुम गदाका छातीसे लगाये सदाके‍ लिये सो जाओगे। वृकोदर ! तुमने सभामें जाकर जो उछल-कूद मचायी थी, वह व्‍यर्थ ही है। उलूक ! नकुलसे भी कहना—भारत ! तुम मेरे कहनेसे अब स्थिरतापूर्वक युद्ध करो । हम तुम्‍हारा पुरूषार्थ देखेगें । तुम युधिष्ठिरके प्रति अपने अनुरागको, मेरे प्रति बढे हुए द्वेषको तथा द्रौपदी के क्‍लेशको भी इन दिनों अच्‍छी तरहसे याद कर लो। उलूक ! तुम राजाओं के बीच सहदेवसे भी मेरी यह बात कहना—गण्‍डुनन्‍दन ! पहलेके दिये हुए क्‍लेशोंको याद कर लो और अब तत्‍पर होकर समरभूमिमें युद्ध करो। तदन्‍तर विराट और द्रुपद से भी मेरी ओरसे कहना ‘विधाता ने जबसे प्रजाकी सृष्टि की है, तभीसे परम गुणगान्‍ सेवकोंने भी अपने स्‍वामियोंकी अच्‍छी तरह परख नहीं की; उनके गूण-अवगुण के भलीभाँति नहीं पहचाना । इसी प्रकार स्‍वामियोंने भी सेवकोंको ठीक-ठीक नहीं समझा। इसीलिये युधिष्ठिर श्रद्धाके योग्‍य नहीं है, तो भी तुम दोनों उन्‍हें अपना राजा मानकर उनकी ओरसे युद्धके लिये यहाँ आये हो। इसलिये तुम सब लोग संगठित होकर मेरे वधके लिये प्रयत्‍न करो। अपनी और पाण्‍डवोंकी भलाईके लिये मेरे साथ युद्ध करो। फिर पांचालराजकुमार धृष्‍टधुम्न को भी मेरा यह संदेश सुना देना—राजकुमार ! यह तुम्‍हारे योग्‍य समय प्राप्‍त हुआ है। तुम्‍हें आचार्य द्रोण अपने सामने ही मिल जायेंगे। समरभूमिमें द्रोणाचार्यके सामने जाकर ही तुम यह जान सकोगे कि तुम्‍हारा उत्‍तम हित किस बात में है। आओ, अपने सुदृढों के साथ रहकर युद्ध करो और गुरूके वधका अत्‍यन्‍त दुष्‍कर पाप कर डालो। उलूक ! इसके बाद तुम शिखण्‍डीसे भी मेरी यह बात कहना—धनुरर्धारियोंमें श्रेष्‍ठ गंगापुत्र कुरूवंशी महाबाहु भीष्‍म् तुम्‍हें स्‍त्री समझकर नहीं मारेंगे। इसलिये तुम अब निर्भय होकर युद्ध करना और समरभूमिमें यत्‍नपूर्वक पराक्रम प्रकट करना । हम तुम्‍हारा पुरूषार्थ देखेंगे। ऐसा कहते-कहते राजा दुर्योधन खिलखिलाकर हंस पडा। तत्‍पश्‍चात्‍ उलूकसे पुन: इस प्रकार बोला— उलूक ! तुम वसुदेवनन्‍दन श्रीकृष्‍णके सामने ही अर्जुन से पुन: इस प्रकार कहना। वीर अर्जुन ! या तो तुम्‍ही हमलोगोंकोपरास्‍त करके इस पृथ्‍वी का शासन करो या हमारे ही हाथोंसे मारे जाकर रणभूमिमें सदा के लिये सो जाओ।पाण्‍डुनन्‍दन ! राज्‍यसे निर्वासित होने, वनमें निवास करने तथा द्रोपदी के अपमानित होनेके क्‍लशोंको याद करके अब भी तो मर्द बनो। क्षत्राणी जिसके लिये पुत्र पैदा करती है, वह सब प्रयोजन सिद्ध करनेका यह समय आ गया है । तुम युद्धमें बल, पराक्रम, उत्‍तम शौर्य, अस्‍त्र-संचालनकी फूर्ती और पुरूषार्थ दिखाते हुए अपने बढे़ हुए क्रोधको (हमारे ऊपर प्रयोग करके ) शान्‍त कर लो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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