महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 200 श्लोक 36-55

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द्विशततम (200) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्विशततम अध्याय: श्लोक 36-55 का हिन्दी अनुवाद

राजन ! तद्नन्तर धृष्टप्रदुम्न ने प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी द्रोण पुत्र को तिरसठ बाणों से बॉध डाला । फिर शान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखवाले बीस बाणों से उसके सारथि को और चार तीखे सायकों से उसके चारो घोड़ों को भी घायल कर दिया । घृष्टप्रदुम्न अश्‍वत्थामा को बॅाध बॉधकर पृथ्वी को कॅपाते हुए से गरज रहे थे। मानो उस महासमर में वे सम्पूर्ण जगत् के प्राण ले रहे हों । राजन ! बलवान् अस्त्रवेता तथा दृढ़ निश्‍चय वाले धृष्टप्रदुम्न ने मृत्यु को ही युध्द से लौटने की अवधि निश्चित करके द्रोणपुत्र पर ही धावा किया । तत्पश्‍चात् अमेय आत्मबल से सम्पन्‍न; रथियों में श्रेष्ठ पान्चाल पुत्र धृष्टप्रदुम्न ने अश्‍वत्थामा के मस्तक पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी । अपने पिता के वध का बारंबार स्मरण करते हुए अश्‍वत्थामा ने भी समरागंण में कुपित हुए धृष्टप्रदुम्न को बाणों द्वारा आच्छादित कर दिया और दस बाणों से मारकर उसे गहरी चोट पहॅुचायी । इसके सिवा, अच्छी तरह छोड़े हुए दो छुरों से पान्चाल राजकुमार के ध्वज और धनुष को काटकर अश्‍वत्थामा ने दूसरे बाणों द्वारा उन्हें भली भॉति पीडि़त किया । इतना ही नहीं, द्रोण पुत्र ने उस महायुध्‍द में धष्‍टप्रदुम्‍न को घोड़े, सारथि तथा रथ से भी वंचित कर दिया साथ ही कुपित हो उनके सारे सेवकों को भी बाणों से मार मार कर खदेड़ना शुरू किया । प्रजानाथ ! तदनन्‍तर पान्‍चालों की सेना भ्रान्‍त एवं आर्त होकर भाग चली उसके सैनिक एक दूसरे को देखते नहीं थे । योध्‍दाओं को युध्‍द से विमुख और धष्‍टप्रदुम्‍न को बाणों से पीडित देख सात्‍यकिने तुरंत अपना रथ अश्‍वत्‍थामा के रथ की ओर बढाया । उन्‍होंने आठ पैने बाणोंसे अश्‍वत्‍थामा को चोट पहॅुचायी तत्‍पश्‍चात् अमर्ष में भरे हुए सात्‍यकिने भॉति भॉति के बीस बाणों द्वारा द्रोणपुत्र को पुनः घायल करके उसके सारथि को भी बॉध डाला और पूर्ण रूप से सावधान हो एक सिद् हस्‍त योध्‍दाओं की भॉति उन्‍होंने चार बाणों से उसके चारों घोड़ों को घायल करके ध्‍वज और धनुष को भी काट दिया । इसके बाद घोड़ो सहित उसके सुवर्ण भूषित रथ को भी छिन्‍न भिन्‍न कर डाला और समरागण में तीस बाणों से उसकी छाती में गहरी चोट पहॅुचायी । राजन ! इस प्रकार बाणों के जाल से पीडित हुए महाबली अश्‍वत्‍थामा को कोई कर्त्‍तव्‍य नहीं सूझता था । गुरू पुत्र की ऐसी अवस्‍था हो जाने पर आपके महारथी पुत्र दुर्योधन ने कृपाचार्य और कर्ण आदि के साथ आकर सात्‍यकि को बाणों से ढक दियां । दुर्योधन ने बीस, शरदान के पुत्र कृपाचार्य ने तीन, कृतवर्मा ने दस, कर्ण ने पचास, दुःशासन ने सौ तथा वृषसेन ने सात पैने बाणों द्वारा शीघ्र ही सब ओर से सात्‍यकिको घायल कर दिया । राजन ! तब सात्‍यकि ने भी उन सभी महारथियों को क्षणभर में रथहीन एवं युध्‍द से विमुख कर दिया । भरतश्रेष्‍ठ ! उधर अश्‍वत्‍थामा को जब चेत हुआ, तब वह दुःख से आतुर हो बारम्‍बार लम्‍बी सॉस खींचता हुआ कुछ देर तक चिन्‍ता में डूबा रहा । फिर दूसरे रथ पर आरूढ हो शत्रुता पन अश्‍वत्‍थामा ने कई सौ बाणों की वर्षा करके सात्‍यकि को आगे बढने से रोक दिया ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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