महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 201 श्लोक 19- 38

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एकाधिकद्विशततम (201) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: एकाधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 19- 38 का हिन्दी अनुवाद

आकाश से उल्‍काऍ गिरने लगीं, दिशाओं का प्रकाश लुप्‍त हो गया और उस सेना में सहसा भयानक अन्‍धकार उतर आया । राक्षस और पिशाच परस्‍पर मिलकर जोर जोर से गर्जना करने लगे, गरम हवा चलने लगी और सूर्य का ताप क्षीण हो गया । कौए सम्‍पूर्ण दिशाओं में कॉव कॉव करके भयानक कोलाहल मचाने लगे तथा मेघ रक्‍त की वर्षा करते हुए आकाश में गरजने लगे । पक्षी और गाय आदि पशु भी चीत्‍कार करने लगे उत्‍तम व्रत का पालन करने वाले शुध्‍द चित साधु पुरूष भी अत्‍यन्‍त अशान्‍त हो उठे । सम्‍पूर्ण महाभूत मानो चक्‍कर काट रहे थे। तीनों लोको के प्राणी ज्‍वरग्रस्‍त के समान संतप्‍त हो उठे थे । पृथ्‍वी पर पडे रहने वाले नाग भी उस अस्‍त्र के तेज से संतप्‍त हो भयंकर आग से छुटकारा पाने के लिये फुफकारते हुए उपर उछलने लगे । भारत ! जलाशय भी तप गये थे, जिससे दग्‍ध होने वाले जलचर प्राणियों को भी शान्ति नहीं मिल पाती थी । दिशा, विदिशा, आकाश और पृथ्‍वी सब ओर से छोटे बडे नाना प्रकार के बाणों की वर्षा होने लगी, वे सभी बाण गरूड और वायु के समान वेगशाली थे । द्रोण पुत्र् के चलाये हुए वज्र के समान वेगशाली बाणों से घायल हुए शत्रुसैनिक आग के जलाये हुए वृक्षों के समान दग्‍ध होकर गिरने लगे । विशालकाय गजराज दग्‍ध हो होकर मेघ की गर्जना के समान भयंकर चीत्‍कार करते हुए सब ओर धराशायी होने लगे । प्रजानाथ ! भयभीत होकर भागे हुए दूसरे बहुत से हाथी सम्‍पूर्ण दिशाओं में उसी प्रकार चक्‍कर काटने लगे, जैसे पहले वन में दावानल से घिर जाने पर वे चारों ओर चक्‍कर लगाते थे । माननीय नरेश ! भारत ! अश्‍वसमूह तथा रथवृन्‍द दसानल से दग्‍ध हुए वृक्षों के अग्रभाग के समान दिखायी दे रहे थे और जहॉ तहॉ सहस्‍त्रों रथ समूह गिरे पडे थे । भरतनन्‍दन ! जैसे प्रलय कालों में संवर्तक्‍ अग्नि सब प्राणियों को जलाकर भस्‍म कर देती है, उसी प्रकार उस आग्‍नेयास्‍त्र् ने पाण्‍डवों की उस भयभीत सेना को युध्‍द स्‍थल में जलाना आरम्‍भ कर दिया । राजन ! उस महासमर में पाण्‍डव सेना को दग्‍ध होती देख आपके सैनिक अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न हो जोर जोर से सिंहनाद करने लगे । भारत ! तदनन्‍तर हर्षसे उल्‍लासित ओर विजय से सुशोभित होने वाले आपके सैनिक नाना प्रकार के सहस्‍त्रों बाजे बजाने लगे । नरेश्‍वर ! उस महासमर में सब लोग अन्‍धकर से आच्‍छन्‍न हो गये थे । पाण्‍डवों की सारी अक्षौहिणी सेना और सव्‍यसाची अर्जुन भी दिखायी नहीं देते थे । राजन ! अमर्ष में भरे हुए द्रोण पुत्र् ने जैसे अस्‍त्र की सृष्टि की थी, वैसा हम लोगो ने पहले ने तो कभी देखा था और न सुना ही था । महाराज ! उस समय अर्जुन ने ब्रहामास्‍त्र् को प्रकट किया; जिसे ब्रहमा जी ने सम्‍पूर्ण अस्‍त्रों के विनाश के लिये बनाया है । फिर तो दो ही घडी में वह सारा अन्‍धकार दूर हो गया, शीतल वायु बहने लगी ओर सारी दिशाऍ स्‍वच्‍छ हो गयी । वहॉ हम लोगो ने अद्भुत द्श्‍य देखा। पाण्‍डवों की वह सारी अक्षौहिणी उस अस्‍त्र के तेज से इस प्रकार दग्‍ध एवं नष्‍ट हो गयी थी कि उसे पहचानना असम्‍भव हो गया ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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