महाभारत सभा पर्व अध्याय 62 श्लोक 14-17
द्विषष्टितम (62) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
अत: उसने उस धन के लोभ से उन पक्षियों वध करके वर्तमान और भविष्य दोनों लाभों का तत्काल नाश कर दिया । राजन् ! इसी प्रकार आप पाण्डवों का सारा धन हड़प लेने के लोभ से उनके साथ द्रोह न करें। अन्यथा उन पक्षियों की हिंसा करने वाले राजा की भाँति आपको भी मोहवश पश्यत्ताप करना पडे़गा । इस द्रोह से आपका उसी तरह सर्वनाश हो जायगा, जैसे बंसी का काँटा निगल लेने से मछली का नाश हो जाता है । भरतकुलभूषण ! जैसे माली उद्यान के वृक्षों को बार-बार खींचता रहता है और समय-समय पर उनसे खिले पुष्पों को चुनता भी रहता है, उसी प्रकार आप पाण्डवरूपी वृक्षों को स्नेहजल से सींचते हुए उनसे उत्पन्न होने वाले धनरूपी पुष्पों को लेते रहिये । जैसे कोयला बनाने वाला वृक्षों को जलाकर भस्म कर देता है, उसी प्रकार आप इन्हें जड़ मूल सहित जलाने की चेष्टा न कीजिये । कहीं ऐसा न हो कि पाण्डवों के साथ विरोध करने के कारण आपको पुत्र, मन्त्री और सेना के साथ यमलोंक में जाना पडे़। भरतवंशीय राजन् ! देवताओं सहित साक्षात् देवराज इन्द्र ही क्यों न हों, जब कुन्तीपुत्र संगठित होकर युद्ध के लिये तैयार होंगे, उनका मुकाबला कौन कर सकता है?
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