महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 45 श्लोक 69-86
पञ्चत्वारिंश (45) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
दूसरी और शत्रुओं को संताप देने वाले यत्नशील इरावान् ने युद्ध में कुपित होकर शत्रुदमन श्रुतायुषपर धावा किया। श्रुतायुष भी प्रयत्नपूर्वक उनका सामना कर पा रहा था। अर्जुन के उस महारथी पुत्र इरावान् ने रणक्षेत्र में श्रुतायुष के घोड़ों को मारकर बडे़ जोर से गर्जना की और उसकी सेना को बाणों से आच्छादित कर दिया। यह देख श्रुतायुषने भी रूष्ट होकर रणभूमि में अर्जुन-पुत्र इरावान् के घोड़ों को अपनी गदाकी चोट से मार डाला। तत्पश्चात् उन दोनों मे खूब जमकर युद्ध होने लगा। अवन्तिदेश के राजकुमार विन्द और अनुविन्द ने सेना और पुत्रसहित वीर महारथी कुन्तिभोज के साथ युद्ध आरम्भ किया। वहां मैंने उन दोनों का अद्भुत और भयंकर पराक्रम देखा। वे दोनों ही अपनी विशाल वाहिनी के साथ स्थिरतापूर्वक खडे़ होकर एक दूसरे का सामना कर रहे थे। अनुविन्द ने कुन्तिभोज पर गदा से आघात किया। तब कुन्तिभोज भी तुरंत ही अपने बाणसमूहों द्वारा उसे आच्छादित कर दिया। साथ ही कुन्तिभोज के पुत्रने विन्द को भी अपने सायकों से घायल कर दिया। विन्दने भी बदले में कुन्तिभोज पुत्र को क्षत-विक्षत कर दिया। वह अद्रुत-सी घटना हुई। राजन् ! पांच भाई केकय-राजकुमारों ने सेनासहित आकर युद्ध में अपनी विशाल वाहिनी के साथ खडे़ हुए गान्धारदेशीय पांच वीरों के साथ युद्ध आरम्भ किया। आपके पुत्र वीरबाहु ने विराट के पुत्र श्रेष्ठ रथी उत्तर के साथ युद्ध किया और उसे तीखे बाणों द्वारा घायल कर दिया। उत्तरने भी वीरबाहु को अपने तीक्ष्ण सायकों का लक्ष्य बनाकर बेध डाला। राजन् ! चेदिराजने समरांगण में उलुकपर धावा किया और उसे अपने बाणों की वर्षा से बीध डाला। वैसे ही उलुक ने भी पंखयुक्त तीखे बाणों द्वारा चेदिराज को गहरी चोट पहुंचायी। प्रजानाथ ! फिर उन दोनों में बड़ाभयंकर युद्ध होने लगा। किसी से पराजित न होनेवाले वे दोनों वीर अत्यन्त कुपित होकर एक दूसरे विदीर्ण किये देते थे। इस प्रकार उस घमासान युद्ध में आपके और पाण्डव पक्षके रथ, हाथी, घोडे़ और पैदल सैन्य के सहस्त्रों योद्धाओं में द्वन्द्व-युद्ध चल रहा था। महाराज ! दो घड़ी तक तो वह युद्ध देखने में बड़ा मनोरम प्रतीत हुआ; फिर उन्मत्त की भॉति विकट युद्ध चलने लगा। उस समय किसी को कुछ सुझ नही पड़ता था। उस समरभूमि में हाथी हाथी के साथ भिड़ गया, रथीने रथीपर आक्रमण किया, घुड़सवार घुडसवारपर चढ़ गया और पैदलने पैदल के साथ युद्ध किया। कुछ ही देर में उस रणक्षेत्र के भीतर शुरवीर सैनिकों का एक दूसरे से भिड़कर अत्यन्त दुर्धर्ष एवं घमासान युद्ध होने लगा। वहां आये हुए देवर्षियों, सिद्धों तथा चारणोंने भूतलपर होनेवाले उस युद्ध को देवासुर-संग्राम के समान भयंकर देखा। आर्य ! तदनन्तर हजारों हाथी, रथ, घुड़सवार और पैदल सैनिक द्वन्द्व-युद्ध के पूर्वोक्त क्रम का उल्लंघन करके सभी सबके साथ युद्ध करने लगे। नरेश्रष्ठ ! जहां-जहां दृष्टि जाती, वही रथ, हाथी, घुड़सवार और पैदल सैनिक बार बार युद्ध करते हुए दिखाई देते।
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