महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 79 श्लोक 38-58

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:२९, २६ जुलाई २०१५ का अवतरण (Text replace - "Category:महाभारत भीष्मपर्व" to "Category:महाभारत भीष्म पर्व")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकोनाशीतितम (79) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 38-58 का हिन्दी अनुवाद

वह शक्ति अपने तेजसे उद्दीप्त हो रही थी। उसने यशस्वी दुर्मुख के चमकीले कवच को फाड़ डाला। फिर वह धरती को चीरती हुई उसमें समा गयी। महारथी सुतसोम ने अपने भाई श्रुतकर्मा को युद्ध में रथहीन हुआ देख समस्त सैनिकों के देखते-देखते उसे अपने रथ पर चढ़ा लिया। राजन! इसी प्रकार वीरवर श्रुतकीर्ति ने युद्धभूमि में आपके यशस्वी पुत्र जयत्सेन को मार डालने की इच्छा से उस पर आक्रमण किया। भारत! श्रुतकीर्ति जब बड़े जोर-जोर से खींचकर अपने विशाल धनुष की गम्भीर टंकार फैला रहा था, उसी समय रणभूमि में आपके पुत्र जयत्सेन ने हँसते हुए से एक तीखे क्षुरप्रद्वारा तुरंत उसका धनुष काट दिया। अपने भाई का धनुष कटा हुआ देख तेजस्वी शतानीक बारंबार सिंह के समान शतानीक ने संग्रामभूमि में अपने धनुष को जोर से खींचकर शीघ्रतापूर्वक दस बाण मारकर जयत्सेन को घायल कर दिया। फिर उसने मदवर्षी गजराज के समान बड़े जोर से गर्जना की। तत्पश्चात् समस्त आवरणों का भेदन कने में समर्थ दूसरे तीक्ष्ण बाण द्वारा शतानीक ने जयत्सेन के वक्ष-स्थल में गहरी चोट पहुँचायी। उसके इस प्रकार करने पर अपने भाई के पास खड़ा हुआ दुष्कर्ण क्रोध से व्याकुल हो उठा। उसने समरभूमि में नकुल पुत्र शतानीक का धनुष काट दिया। तबमहाबली शतानीक ने भार सहन करने में समर्थ दूसरा अत्यन्त उत्तम धनुष लेकर उस पर भयंकर बाणों का अनुसंधान किया। फिर भाई के सामने ही दुष्कर्ण से ‘खड़ा रह, खड़ा रह’ ऐसा कहकर उसके ऊपर प्रज्वलित सर्पो के समान तीखे बाणों का प्रहारकिया। आर्य! तदनन्तर एक बाण से उसके धनुष को काट दिया, दो से उसके सारथि को क्षत-विक्षत कर दिया और सात बाणों से उस युद्धस्थल में स्वयं दुष्कर्ण को भी तुरंत घायल कर दिया। दुष्कर्ण के घोड़े मन और वायु के समान वेगशाली थे। उनका रंग चितकबरा था। शतानीक ने बारह तीखे बाणों से उन सब घोड़ों को भी तुरंत मार डाला। तत्पश्चात् लक्ष्य को शीघ्र मार गिराने वाले एक दूसरे भल्ल नामक बाण का उत्तम रीति से प्रयोग करके क्रोध में भरे हुए शतानीक ने दुष्कर्ण के हृदय में अत्यन्त गहरा आघात किया। इससे दुष्कर्ण वज्राहत वृक्ष की भाँति पृथ्वी पर गिर पड़ा। राजन्! दुष्कर्ण को आघात से पीडि़त देख पाँच महारथियों ने शतानीक को मार डालने की इच्छा से उसे सब ओर से घेर लिया। उनके बाणसमूहों से यशस्वी शतानीक को आच्छादित होते देख क्रोध में भरे हुए पाँच भाई केकयराजकुमारों ने उन पाँचों महारथियों पर धावा किया। महाराज! उन्हें आते देख आपके महारथी पुत्र उनका सामना करने के लिये आगे बढे़,जैसे हाथी दूसरे हाथियों से भिड़ने के लिये आगे बढ़ते हैं। नरेश्वर! दुर्मुख, दुर्जय, युवा वीर दुर्मर्षण, शत्रुन्जय तथा शत्रुसह-ये सब के सब यशस्वी वीर क्रोध में भरकर पाँचों भाई केकयों का सामना करने के लिये एक साथ आगे बढ़े। उनके रथ नगरों के समान प्रतीत होते थे। उनमें मन के समान वेगशाली घोड़े जुते हुए थे। नाना प्रकार के रूप रंगवाली और विचित्र पताकाएँ उन्हें अलंकृत कर रही थीं। ऐसे रथों पर आरूढ़ सुन्दर धनुष धारण किये विचित्र कवच और ध्वजों से सुशोभित उन वीरों ने शत्रु की सेना में उसी प्रकार प्रवेश किया, जैसे सिंह एक वन से दूसरे वन में प्रवेश करते हैं।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।