महाभारत वन पर्व अध्याय 119 श्लोक 14-22
एकोनविंशत्यधिकशततम (119) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )
भला ! वे कौरव इन पाण्डवों का सामना कैसे सकते है) ये बड़ी बड़ी भुजाओं वाले भीमसेन बिना अस्त्र शस्त्रों के ही शत्रुओं की शक्तिशाली सेना का संहार कर सकते है। भीम का तो सिहंनाद सुनकर ही विरोधर दल के सैनिक मल मुत्र करने लगते है । वे ही वेगशाली भीम इन दिनों भूख प्यास और रास्ता चलने की थकावट दुर्बल हो गये है । इस भयंकर वनवास का स्मरण करते हुए जब ये हाथों में अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र एवं धनुष बाण लिये शत्रुओ पर आक्रमण करेंगे, उस समय किसी को भी जीता न छोड़ेगे- यह मेरा निश्चय है । इनके समान पराक्रमी और बलशाली वीर इस पृथ्वी पर
- इस प्रकार के वृक्षो को देखना मृत्युसूचक माना है । *
कोई नही है । इस समय सर्दी गर्मी और वायु के कष्ट से यद्यपि इनका शरीर दुबला हो गया है तो भी समर में शत्रुओं से किसी को भी ये शेष नहीं रहने देंगे । जो पूर्व दिशा में (दिग्विजय की यात्रा के समय) केवल एक रथ लेकर युद्ध में बहुत से राजाओं को सेवकों सहित परास्त करके सकुशल लौट आये थे, वे ही अतिरथी और वेगशाली पीर वृकोदर आज वन में वल्कल वस्त्र पहनकर कष्ट भोग रहे हैं जिसने समुद्र तट पर सामना करने के लिए आये हुए दक्षिण दिशा के सम्पूर्ण राजाओं पर विजय पायी थी, उसी वेगवान इस वीर सहदेव को देखो यह आज तपस्वी सी वेषभूषा धारण किये हुए दु:ख पा रहा है । जिस युद्ध कुशल नकुल ने एकमात्र रथ की सहायता से पश्चिम दिशा के समस्त भूपालों को जीत लिया था, वही आज वन में फल मूल से जीवन र्निवाह करता हुआ सकर पर जटा धारण किये मलिन शरीर से विचर रहा है । जो अतिरथी राजा द्रुपद के समृद्धिशाली यज्ञ में वेदी में प्रकट हुई थी, वही यह सुख भोगने के योग्य सती साध्वी द्रौपदी वनवास के इस महान दु:ख को कैसे सहन करती है । धर्म, वायु, इन्द्र और अश्विनीकुमार जैसे देवताओं के ये पुत्र सुख भोगने के योग्य होते हुए आज सब प्रकार के सुखों से वंचित हो वन में कैसे विचरण कर रहे है । पत्नी सहित धर्मराज युधिष्ठिर जूए में हार गये और भाइयों एवं सेवकों सहित राज्य से बाहर कर दिये गये; उधर दुर्योधन (अनीतिपरायण होकर भी दिनों दिन) बढ़ रहा है; ऐसी दशा में पर्वतों सहित यह पृथ्वी क्यों नहीं फट जाती ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रा पर्व में लोमशतीर्थ यात्रा के प्रसंग में बलराम वाक्य विषयक एक सौ उन्नीसवां अध्याय पुरा हुआ ।
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