महाभारत वन पर्व अध्याय 123 श्लोक 16-24

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त्रयोविंशत्‍यधि‍कशततम (123) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: त्रयोविंशत्‍यधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 16-24 का हिन्दी अनुवाद

पति‍ की आज्ञा पाकर सुकन्‍या अश्‍वि‍नीकुमारों से कहा- ‘आप मेरे पति‍ को रूप और यौवन से सम्‍पन्‍न बना दें ।‘ उसका यह कथन सुनकर अश्‍वि‍नीकुमारों ने राजकुमारी सुकन्‍या से कहा- ‘तुम्‍हारे पति‍ देव इस जल में प्रवेश करें ।‘ तब च्‍यवन मुनि‍ ने सुन्‍दर रूप की अभीलाषा लेकर शीघ्रता पूर्वक उस सरोवर के जल में प्रवेश कि‍या । राजन ! उनके साथ ही दोनो अश्‍वि‍नीकुमार भी उस सरोवर में प्रवेश कर गये तदनन्‍तर दो घड़ी के पश्‍चात वे उन सबकी युवावस्‍था थी। उन्होंने कानों मे चमकि‍ले कुण्‍डल धारण कर रक्‍खे थे। वेभभूषा भी उनकी एक सी ही थी और वे सभी मन की प्रीती बढ़ाने वाले थे । सरोवर से बाहर आकर उन सब ने एक साथ कहा- ‘शुभे ! भद्रे ! वरवर्णि‍नि‍ ! हममें से कि‍सी एक को, जो तुम्‍हारी रूचि‍ के अनुकूल हो, अपना पति‍ बना लो । ‘अथवा शोभने ! जि‍सको भी तुम मन से चाहती हो ओ, उसी को पति‍ बनाओ ।‘ देवी सुकन्‍या ने उस सबको एक जैसा रूप धारण कि‍ये खड़े देख मन और बुद्धि‍ से नि‍श्‍चय कर के अपने पति‍ को ही स्‍वीकार कि‍या । महातेजस्‍वी च्‍यवन मुनि‍ ने अनुकूल पत्‍नी, तरूण अवस्‍था और मनोवांछि‍त रूप पाकर बढ़े हर्ष का अनुभव कि‍या और दोनों अश्‍वि‍नीकुमारों से कहा- ‘आप दोनो ने मुझ बूढ़े को रूपवान और तरूण बना दि‍या, साथ ही मुझे यह भार्या भी मि‍ल गयी; इसलि‍ये मै प्रसन्‍न होकर आप दोनों को यज्ञ में देवाराज इन्‍द्र के सामने ही सोमपान का अधि‍कारी बना दूंगा । यह मैं आप लोगों से सत्‍य कहता हूं । यह सुनकर दोनों अश्‍वि‍नीकुमार प्रसन्‍नचि‍त हो देवलोक को लौट गये और च्‍यवन तथा सुकन्‍या देवदम्‍पति‍ की भांति‍ वि‍हार करने लगे ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वन पर्व के अन्तर्गत तीथयात्रा पर्व लोमश तीर्थ यात्रा के प्रसंग में सुकन्योपाख्यान विषयक एक सौ तेईसवां अध्याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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