महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 22 श्लोक 1-19

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द्वाविंश (22) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व: द्वाविंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

द्रोण के युद्ध के विषय में दुर्योधन और कर्ण का संवाद

धृतराष्‍ट्र ने पूछा – संजय ! द्रोणाचार्य ने उस महासमर में जब पाण्‍डवों तथा समस्‍त पाचालों को मार भगाया, तब क्षत्रियों के लिये यश का विस्‍तार करनेवाली, कायरों द्वारा न अपनायी जानेवाली और श्रेष्‍ठ पुरूषों द्वारा सेवित युद्धविषयक उत्‍तम बुद्धि का आश्रय लेकर क्‍या कोई दूसरा वीर भी उनके सामने आया ? वही वीरों मे उन्‍नतिशील और शौर्य सम्‍पन्‍न है, जो सैनिकों के भाग जाने पर भी स्‍वयं युद्धक्षेत्र में लौटकर आ जाय । अहो ! क्‍या उस समय द्रोणाचार्य को डटा हुआ देखकर पाण्‍डवों मे कोई भी वीर पुरूष नहीं था (जो द्रोणाचार्य का सामना कर सके)। जँभाई लेते हुए व्‍याध्र तथा मदकी धारा बहानेवाले गजराज की भॉति पराक्रमी, युद्धमें प्राणों का विसर्जन करने के लिये उघत, कवच आदि सुसज्जित, विचित्र रीतिसे युद्ध करनेवाले, शत्रुओं का भय बढ़ानेवाले, कृतज्ञ, सत्‍यपरायण, दुर्योधन के हितैषी तथा शूरवीर, भरदाजनन्‍दन महाधनुर्धर पुरूषसिंह द्रोणाचार्य को युद्धमें डटा हुआ देख किन शूरवीरोंने लौटकर उनका सामना किया ? संजय ! यह वृतान्‍त मुझसे कहो।

संजय ने कहा- महाराज ! कौरवों ने देखा कि पाचाल, पाण्‍डव, मत्‍स्‍य, सृंजय, चेदि और केकय देशीय योद्धा युद्ध में द्रोणाचार्य के बाणों से पीडित हो विचलित हो उठे हैं तथा जैसे समुद्र की महान् जलराशि बहुत से नावों को बहा ले जाती हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य के धनुष से छूटकर शीघ्रही प्राण हर लेनेवाले बाण समुदाय ने पाण्‍डव-सैनिकों को मार भगाया है । तब वे सिंहनाद एवं नाना प्रकार के रणवाधोंका गम्‍भीर घोष करते हुए शत्रुओं के रथारोहियों, हाथीसवारो तथा पैदल सैनिको को सब ओर से रोकने लगे। सेना के बीचमें खड़े हो स्‍वजनोंसे घिरे हुए राजा दुर्योधन ने पाण्‍डव-सैनिकों की ओर देखते हुए अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न होकर कर्णसे हॅसते हुए से कहा।

दुर्योधन बोला- राधानन्‍दन ! देखों, सुदृढ़ धनुष धारण करनेवाले द्रोणाचार्य के बाणों से ये पाचाल सैनिक उसी प्रकार पीडित हो रहे हैं, जैसे सिंह वनवासी मृगों को त्रस्‍त कर देती है। मेरा तो ऐसा विश्‍वास है कि ये फिर कभी युद्ध की इच्‍छा नही करेंगे । जैसे वायु बडे़-बडे़ वृक्षों को उखाड़ देती हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य ने युद्धसे इनके पॉव उखाड़ दिये हैं। महामना द्रोण के सुवर्णमय पंख युक्‍त बाणों द्वारा पीडित होकर ये इधर-उधर चक्‍कर काटते हुए एक ही मार्गसे नहीं भाग रहे हैं। कौरव सैनिकों तथा महामना द्रोण ने इनकी गति रोक दी है । जैसे दावानल से हाथी घिर जाते हैं, उसी प्रकार ये तथा अन्‍य पाण्‍डव-योद्धा कौरवों से घिर गये हैं। भ्रमरों के समान द्रोण के पैने बाणों से घायल होकर ये रणभूमि में पलायन करते हुए एक दूसरे की आड़ में छिप रहे हैं। यह महाक्रोधी भीमसेन पाण्‍डव तथा सृंजयों से रहित हो मेरे योद्धाओं से घिर गया है । कर्ण ! इस अवस्‍था में भीमसेन मुझे आनन्दित सा कर रहा है। निश्‍चय ही आज जीवन और राज्‍य से निराश हो यह दुर्बुद्धि पाण्‍डुकुमार सारे संसार को द्रोणमय ही देख रहा होगा।

कर्ण बोला – राजन ! यह महाबाहु भीमसेन जीते-जी कभी युद्ध नहीं छोड़ सकता है । पुरूषसिंह ! तुम्‍हारे सैनिक जो ये सिंहनाद कर रहे हैं, इन्‍हें भीमसेन कभी नहीं सहेगा। पाण्‍डव शूरवीर, बलवान, अस्‍त्रविद्या में निपुण तथा युद्ध में उन्‍मत होकर लड़नेवाले हैं । ये रणभूमि से कभी भाग नहीं सकते हैं । मेरा यही विश्‍वास है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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