महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 94 श्लोक 15-36
चतुर्नवतितम (94) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)
समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ और सम्पूर्ण बुद्धिमानों में उत्तम दशार्हनन्दन श्रीकृष्ण के पश्चात समस्त धर्मों के ज्ञाता विदुरजी भी उस रथ पर जा बैठे। तदनंतर शत्रुओं को संताप देनेवाले श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे दुर्योधन और सुबलपुत्र शकुनि भी दूसरे रथ पर बैठ कर चले गए। सात्यिकी, कृतवर्मा तथा वृष्निवंश के दूसरे रथी भी हाथी, घोड़ों तथा रथों पर बैठकर श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे गए । राजन् ! उन सबके जाते समय सोने के आभूषणों से विभूषित, उत्तम घोड़ों से जुते हुए एवं गंभीर घोषयुक्त उनके विचित्र रथ बड़ी शोभा पा रहे थे। अपनी दिव्य कान्ति से प्रकाशित होनेवाले परम बुद्धिमान भगवान श्रीकृष्ण यथासमय उस विशाल राजपथ पर जा पहुंचे, जिस पर पूर्वकाल के राजर्षि यात्रा करते थे । वहाँ की धूल झाड़ दी गयी थी और सर्वत्र जल से छिड़काव किया गया था । भगवान श्रीकृष्ण के प्रस्थान करने पर ढ़ोल, शंख तथा दूसरे-दूसरे बाजे एक साथ बज उठे । शत्रुओं को संताप देनेवाले, सिंह के समान पराक्रमी तथा सम्पूर्ण जगत के प्रख्यात तरुण वीर भगवान श्रीकृष्ण के रथ को घेरकर चलते थे । श्रीकृष्ण के आगे चलनेवाले सैनिकों की संख्या कई सहस्त्र थी । उन सबने विचित्र एवं अद्भुत वस्त्र धारण कर रखे थे । उनके हाथों में खड्ग और प्रास आदि आयुध शोभा पाते थे। किसी से पराजित न होनेवाले दशार्हवंशी वीर भगवान श्रीकृष्ण के पीछे उस यात्रा के समय पाँच सौ हाथी और सहसत्रों रथ पर जा रहे थे। शत्रुदमन जनमेजय ! उस समय भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन करने के लिए बालक, वृद्ध तथा स्त्रियों सहित कौरवों का सारा नगर सड़क पर आ गया था। छतों के सड़क की ओर वाले भाग पर बैठी हुई झुंड की झुंड स्त्रियों के भार से मानो हस्तिनापुर के सारे भवन कंपित से हो रहे थे भगवान श्रीकृष्ण कौरवों से सम्मानित होते हुए, उनकी मीठी-मीठी बातें सुनते हुए और यथायोग्य उनका भी सत्कार करते हुए धीरे-धीरे सबकी ओर देखते जा रहे थे। कौरव सभा के समीप पहुँचकर श्रीकृष्ण के अनुगामी सेवकों ने शंख और वेणु आदि वाद्यों की ध्वनि से सम्पूर्ण दिशाओं को गूँजा दिया। तत्पश्चात अमित तेजस्वी राजाओं की वह सारी सभा भगवान श्रीकृष्ण के शुभागमन की आकांक्षा के कारण हर्षोल्लास से चंचल हो उठी। श्रीकृष्ण के निकट आने पर उनके रथ का मेघगर्जना के समान गंभीर घोष सुनकर सभी नरेश रोमांचित हो उठे । सभा के द्वार पर पहुँचकर सर्वयादवशिरोमणि भगवान श्रीकृष्ण ने कैलाशशिखर के समान सभुज्ज्वल रथ से नीचे उतरकर नूतन मेघ के समान श्याम तथा तेज से प्रज्वलित-सी होनेवाली इंद्रभवनतुल्य उस कौरव सभा के भीतर प्रवेश किया। राजन् ! जैसे सूर्य अपनी प्रभा से आकाश के तारों को तिरोहित कर देते हैं, उसी प्रकार महायशस्वी भगवान श्रीकृष्ण अपनी दिव्य कान्ति से कौरवों को आच्छादित करते हुए विदुर और सात्यिकी का हाथ पकड़े सभा में आए। वसुदेवनंदन श्रीकृष्ण के आगे-आगे कर्ण और दुर्योधन थे और उनके पीछे कृतवर्मा तथा अन्य वृष्णिवंशी वीर थे। उस समय भीष्म और द्रोणाचार्य आदि सब लोग भगवान श्रीकृष्ण का सम्मान करने के लिए राजा धृतराष्ट्र को आगे करके अपने आसनों से उठकर आगे बढ़े।दशार्हनन्दन श्रीकृष्ण के आते ही महायशस्वी प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र भीष्म और द्रोणाचार्य के साथ ही उठ गए थे।
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