महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 183 श्लोक 24-46

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त्र्यशीत्यधिकशततम (183) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: त्र्यशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 24-46 का हिन्दी अनुवाद

उन्हें इस प्रकार व्यथित देखकर भगवान श्रीकृष्ण बोले-‘कुन्तीनन्दन! भरतश्रेष्ठ! आप दुःख न मानिये। आपके लिये मूढ़ मनुष्यों की सी यह व्याकुलता शोभा नहीं देती। ‘राजन! उठिये और युद्ध कीजिये। इस महासंग्राम का गुरूतर भार सँभालिये। प्रभो! आपके घबरा जाने पर विजय मिलने में संदेह है’। श्रीकृष्ण का कथन सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर ने दोनों हाथों से अपनी आँखें पोंछकर उनसे इस प्रकार कहा-। ‘महाबाहो! मुझे धर्म की श्रेष्ठ गति विदित है। जो मनुष्य किसी के किये हुए उपकार को याद नहीं रखता, उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है। ‘जनार्दन! जब हम लोग वन में थे, उन दिनों महामनस्वी हिडिम्बाकुमार ने बालक होने पर भी हमारी बड़ी भारी सहायता की थी। ‘श्रीकृष्ण! श्वेतवाहन अर्जुन को अस्त्र-प्राप्ति के लिये अन्यत्र गया हुआ जानकर महाधनुर्धर घटोत्कच काम्यक वन में मेरे पास आया और जब तक अर्जुन लौट नहीं आये तब तक हमारे साथ ही रहा। ‘गन्धमादन की यात्रा में उसने बड़े-बड़े संकटों से हमें बचाया है, पान्चालराजकुमारी द्रौपदी जब थक गयीं तो उस महाकाय वीर ने उन्हें अपनी पीठ पर बिठाकर ढोया। ‘प्रभो! युद्ध के आरम्भ से ही इसने मेरा बहुत सहयोग किया है, इसने महायुद्ध में मेरे लिये दुष्कर कर्म कर दिखाया है। ‘जनार्दन! सहदेव पर जो मेरा स्वाभाविक पे्रम है, वही उत्तम प्रेम राक्षसराज घटोत्कच पर भी रहा है। ‘वार्ष्णेय! वह महाबाहु मेरा भक्त था। मैं उसे प्रिय था और वह मुझे, इसीलिये उसके शोक से संतप्त होकर मैं मोह को प्राप्त हो रहा हूँ। ‘वृष्णिनन्दन! देखिये, कौरव किस प्रकार मेरी सेनाओं को खदेड़ रहे हैं तथा महारथी द्रोण और कर्ण किस प्रकार युद्ध में प्रयत्नपूर्वक लगे हुए हैं? ‘जैसे दो मतवाले हाथी नरकुल के विशाल वन को रौंद रहे हों, उसी प्रकार इसआधी रात के समय उनकी सेना द्वारा यह पाण्डव सेना कुचल दी गयी है। ‘माधव! भीमसेन के बाहुबल और अर्जुन के विचित्र अस्त्र-कौशल का अनादर करके कौरव योद्धा अपना पराक्रम प्रकट कर रहे हैं। ‘ये द्रोण, कर्ण तथा राजा दुर्योधन युद्ध में राक्षस घटोत्कच का वध करके बड़े हर्ष के साथ सिंहनाद कर रहे हैं। ‘जनार्दन! हमारे और आपके जीते-जी हिडिम्बाकुमार घटोत्कच सूत पुत्र के साथ संग्राम करके मृत्यु को कैसे प्राप्त हुआ? ‘श्रीकृष्ण! हम सबकी अवहेलना करके सव्यसाची अर्जुन के देखते-देखते भीमसेन कुमार महाबली राक्षस घटोत्कच मारा गया है। ‘श्रीकृष्ण! धृतराष्ट्र के दुरात्मा पुत्रों ने जब युद्ध में अभिमन्यु को मारा था, उस समय महारथी अर्जुन वहाँ उपस्थित नहीं थे। ‘दुरात्मा जयद्रथ ने हम सब लोगों को भी व्यूह के बाहर ही रोक लिया था। वहाँ अभिमन्यु के वध में पुत्रसहित द्रोणाचार्य ही कारण हुए थे।‘गुरू द्रोणाचार्य ने स्वयं ही कण्र्का को अभिमन्यु के वध का उपाय बताया था और जब वह तलवार लेकर परिश्रमपूर्वक युद्ध कर रहा था, उस समय उन्होंने ही उसकी तलवार के दो टुकड़े कर दिये थे। ‘इस प्रकार अब वह संकट में पड़ गया, तब कृतवर्मा ने क्रूर मनुष्य की भाँति सहसा उसके घोड़ों तथा दोनों पार्श्व-रक्षकों को मार डाला। ‘इसी प्रकार दूसरे महाधनुर्धरों ने सुभद्राकुमार को युद्ध में मार गिराया था। यादवश्रेष्ठ श्रीकृष्ण! अभिमन्यु के वध में जयद्रथ का बहुत कम अपराध था, तो भी उस छोटे से कारण को लेकर ही गाण्डवीधारी अर्जुन ने जयद्रथ को मार डालाहै। यह कार्य मुझे अधिक प्रिय नहीं लगा है। ‘यदि पाण्डवों के लिये अपने शत्रु का वध करना न्यायसंगत है, तो युद्धभूमि में सबसे पहले कर्ण और द्रोणाचार्य को ही मार डालना चाहिये, मेरा तो यही मत है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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