महाभारत वन पर्व अध्याय 307 श्लोक 19-28

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:१८, २९ जुलाई २०१५ का अवतरण (Text replace - "भगवान् " to "भगवान ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सप्ताधिकत्रिशततम (307) अध्याय: वन पर्व (कुण्डलाहरणपर्व)

महाभारत: वन पर्व: सप्ताधिकत्रिशततमोऽध्यायः 19-28 श्लोक का हिन्दी अनुवाद


कुन्ती बोली - प्रभो ! आप मेरे गर्भ से जिसे जन्म देंगे, उस मेरे पुत्र के कुण्डल और कवच आदि अमृत से उत्पन्न हुए होंगे; तो भगवन् ! आपने जैसा कहा है, उसी रूप में मेरा आपके साथ समागम हो। आपका वह पुत्र आपके ही समान वीर्य, रूप, धैर्य, ओज तथा धर्म से युक्त होना चाहिये।। सूर्यदेव ने कहा- यौवन के मद में सुशोभित होने वाली भीरु राजकुमारी ! माता अदिति ने मुझे जो कुण्डल दिये हैं, उन्हें मैं तुम्हारे इस पुत्र को दे दूँगा। साथ ही यह उत्तम कवच भी उसे अर्पित करूँगा। कुन्ती बोली- भगवन् ! गोपते ! जैसा आप कहते हैं, वैसा ही पुत्र यदि मुझे प्राप्त हो, तो मैं आपके साथ उत्तम रीति से समागम करूँगी। वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय ! तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर आकाशचारी राहुशत्रु भगवान सूर्य ने योगरूप से कुन्ती के शरीर में प्रवेश किया और उसकी नाभि को छू दिया। तब वह राजकन्या सूर्य के तेज से विव्हल और अचेत सी होकर शय्या पर गिर पड़ी। सूर्य ने कहा- सुन्दरी ! मैं ऐसी चेष्टा करूँगा, जिससे तुम समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ पुत्र को जन्म दोगी और कन्या ही बनी रहोगी। राजेन्द्र ! तक संगम के लिये उद्यत हुई महातेजस्वी सूर्यदेव की ओर देखकर लज्जित हुई उस राजकन्या ने उनसे कहा- ‘प्रभो ! ऐसा ही हो’। वैशम्पायनजी कहते हैं- ऐसा कहकर कुन्तनरेश की कन्या पृथा भगवान सूर्य से पुत्र के लिये प्रार्थना करती हुई अत्यन्त लज्जा और मोह के वशीभूत होकर कटी हुई लता की भाँति उस पवित्र शय्या पर गिर पड़ी। तत्पश्चात् सूर्यदेव ने उसे अपने तेज से मोहित कर दियाऔर योगशक्ति के द्वारा उसके भीतर प्रवेश करके अपना तेजोमय वीर्य स्थापित कर दिया। उन्होंने कुनती को दूषित नहीं किया- उसका कन्याभाव अछूता ही रहा। तदनन्तर वह राजकन्या फिर सचेत हो गयी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत कुण्डलाहरणपर्व में सूर्य कुनती समागम विषयक तीन सौ सातवाँ अध्याय पूरा हुआ।










« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।