महाभारत वन पर्व अध्याय 210 श्लोक 15-21

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १०:१७, ३० जुलाई २०१५ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

दशाधिकद्विशततम (210) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व )

महाभारत: वन पर्व: दशाधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 15-21 का हिन्दी अनुवाद
विषयसेवन से हानि, सत्‍सगड़ से लाभ और ब्राह्मी विद्या का वर्णन

विप्रवर । उन ब्राह्मणों को नमस्‍कार करके उनके लिये जो प्रिय वस्‍तु है, उसका वर्णन करता हूं। तुम मुझ से ब्राह्मी विद्या श्रवण करो । पचमहाभूतों से बना हुआ यह सम्‍पूर्ण चराचर जगत् तब प्रकार से अजेय ब्रह्मस्‍वरुप है । ब्रह्म से उत्‍कृष्‍ट दूसरी कोई वस्‍तु नहीं है । आकाश, वायु, अग्रि, जल तथा पृथिवी- ये पांच महा भूत हैं तथा शब्‍द, स्‍पर्श, रुप, रस और गन्‍ध –ये क्रमश: उनके विशेष गुण हैं । उन शब्‍द आदि गुणों के भी अनेक गुण-भेद हैं, क्‍योंकि इन गुणों का परस्‍पर संक्रमण भी देखा जाता है। पहले-पहले के सभी गुण क्रमश: बादवाले तीन गुणवान् भूतों (अग्रि,जल और पृथ्‍वी ) मैं उपलब्‍ध होते हैं अर्थात् अग्‍नि में शब्‍द, स्‍पर्श और रुप: जल में शब्‍द, स्‍पर्श, रुप और रस तथा पृथ्‍वी में शब्‍द, स्‍पर्श, रस और गन्‍ध पाये जाते हैं । इन पांच भूतों के अतिरिक्‍त छठा तत्‍व है चित्त, इसी को मन कहते हैं। सातवां तत्‍व बुद्धि है और उसके बाद आठवां अहंकार है । इनके सिवा पांच ज्ञानेन्द्रियां, प्राण और सत्‍व, रज, तम इन सत्रह तत्‍वों का समूह अव्‍यत कहलाता है । पांच ज्ञानेन्द्रियां तथा मन और बुद्धि के जो व्‍यक्‍त और अव्‍यक्‍त विषय हैं, जो बुद्विरुपी गुहा में छिपे रहते हैं, उन्‍हें सम्मिलित करने से चौबीस तत्‍व होते हैं। इन तत्‍वों का समुदाय ही व्‍यक्‍त और अव्‍यक्‍त रुप गुण है । (यह सब का सब ब्रह्म स्‍वरुप है। ) ब्राह्मण । इस प्रकार ये सब बातें मैंने तुम्‍हें बतायी हैं, अब और क्‍या सुनना चाहते हो । इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समस्‍या पर्व में ब्राह्मण माहात्‍म्‍य विषयक दो सौ दसवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।