महाभारत आदि पर्व अध्याय 76 श्लोक 64-72

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षट्सप्ततितम (76) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: षट्सप्ततितम अध्‍याय: श्लोक 64-72 का हिन्दी अनुवाद

‘जो लोग सम्‍पूर्ण वेद के सर्वोत्तम ज्ञान को देने वाले तथा समस्‍त विद्याओं के आश्रयभूत पूजनीय गुरुदेव का उनसे विद्या प्राप्त करके भी आदर नहीं करते, वे प्रतिष्ठा रहित होकर पाप पूर्ण लोकों- नरकों में जाते हैं। वैशम्‍पायनी कहते हैं- जनमेजय ! विद्वान् शुक्राचार्य मदिरा पान से ठगे गये थे उस अत्‍यन्‍त भयानक परिस्थिति को पहुंच गये थे, जिसमें तनिक भी चेत नहीं रह जाता। मदिरा से मोहित होने के कारण ही वे उस समय अपने मन के अनुकूल चलने वाले प्रिय शिष्‍य ब्राह्मण कुमार कच को भी पी गये थे। यह सब देख और सोचकर वे महानुभाव कविपुत्र शुक्र कुपित हो उठे। मदिरापान के प्रति उनके मन में क्रोध और घ्रणा का भाव जाग उठा और उन्‍होंने ब्राह्मणों का हित करने की इच्छा से स्‍वयं इस प्रकार घोषण की-‘आज से इस जगत् का कोई भी मन्‍दबुद्धि ब्राह्मण अज्ञान से भी मदिरापान करेगा, वह धर्म से भ्रष्ट हो ब्रह्म हत्‍या के पाप का भागी होगा तथा इस लोक और परलोक दोनों में वह निन्दित होगा । ‘धर्मशास्त्रों में ब्राह्मण-धर्म की जो सीमा निर्धारित की गयी है, उसी में मेरे द्वारा स्‍थापित की हुई यह मर्यादा भी रहे और यह सम्‍पूर्ण लोक में मान्‍य हो। साधु पुरुष, ब्राह्मण, कुरुओं के समीप अध्‍ययन करने वाले शिष्‍य, देवता और समस्‍त जगत् के मनुष्‍य, मेरी बांधी हुई इस मर्यादा को अच्‍छी तरह सुन लें’। ऐसा कहकर तपस्‍या की निधियों की निधि, अप्रमेय शक्तिशाली महानुभाव शुक्राचार्य ने दैव ने जिनकी बुद्धि को मोहित कर दिया था उन दानवों को बुलाया और इस प्रकार कहा- ‘दानवो ! तुम सब मूर्ख हो। मैं तुम्‍हें बताये देता हूं- महात्‍मा कच मुझ से संजीविनी विद्या पाकर सिद्ध हो गये हैं। इनका प्रभाव मेरे ही समान है। ये ब्राह्मण ब्रह्मस्‍वरुप हैं। ‘जिन महात्‍मा कच ने देवताओं के लिये वह दुष्‍कर कार्य किया है, उनकी कीर्ति कभी नष्ट नहीं हो सकती और वे यज्ञभाग के अधिकारी होंगे।‘ ऐसा कहकर शुक्राचार्य चुप हो गये और दानव आश्चर्यचकित होकर अपने-अपने घर को चले गये। कच ने एक हजार वर्षों तक गुरु के समीप रहकर अपना व्रत पूरा कर लिया। तब घर जाने की अनुमति मिल जाने पर कच ने देवलोक में जाने का विचार किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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