महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 323 श्लोक 22-29

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०६:२७, १ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==त्रयोविंशत्यधिकत्रिशततम (323) अध्याय: शान्ति पर्व (मो...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

त्रयोविंशत्यधिकत्रिशततम (323) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: त्रयोविंशत्यधिकत्रिशततम अध्‍याय: श्लोक 22-29 का हिन्दी अनुवाद

ऐसा कठोर तप करने पर भी न तो उनके प्राण नष्‍ट हुए न उन्‍हें थकान ही हुई । यह तीनों लोकों के लिये अद्भूत-सी बात हुई। योगयुक्‍त हुए अमित तेजस्‍वी व्‍यासजी की जटाएँ उनके तेज से आग की लपटों के समान प्रज्‍वलित दिखायी देती थीं। मुझे तो यह वृतान्‍त भगवान् मार्कण्‍डेयजी ने सुनाया था। वे मुझे सदा ही देवताओं के चरित्र सुनाया करते थे। तात ! उसी तपस्‍या से उदीप्‍त हुई महात्‍मा व्‍यासजी की ये जटाएँ आज भी अग्नि के समान प्रकाशित हो रही हैं। भारत ! उनकी ऐसी तपस्‍या और भक्ति देखकर महादेव जी बडे़ प्रसन्‍न हुए और उन्‍होंने मन-ही-मन उन्‍हें अभीष्‍ट वर देने का विचार किया। भगवान् शिव व्‍यासजी के सामने आये और हँसते हुए-से बोले—'द्वैपायन ! तुम जैसा चाहते हो, वैसा ही पुत्र तुम्‍हें प्राप्‍त होगा। 'जैसे अग्नि, जैसे, वायु, जैसे, पृथ्‍वी, जैसे, जल और जैसे आकाश शुद्ध है, तुम्‍हारा पुत्र भी वैसा ही शुद्ध एवं महान् होगा। 'वह भगवद्वाव में रँगा, भगवान् में ही उसकी बुद्धि होगी, भगवान् में ही उसका मन लगा रहेगा और एकमात्र भगवान् को ही वह अपना आश्रय समझेगा । उसके तेज से तीनों लोक व्‍याप्‍त हो जायँगे और तुम्‍हारा वह पुत्र महान् यश प्राप्‍त करेगा'।

इस प्रकार श्री महाभारत शान्ति पर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्म पर्व में शुकदेव की उत्पत्तिविषयक तीन सौ तेईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।