महाभारत वन पर्व अध्याय 250 श्लोक 1-13

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:२१, १ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==पच्‍चाशदधिकद्विशततम (250) अध्‍याय: वन पर्व (घोषयात्रा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

पच्‍चाशदधिकद्विशततम (250) अध्‍याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व )

महाभारत: वन पर्व: पच्‍चाशदधिकद्विशततमअध्‍याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद
कर्णके समझानेपर भी दुर्योधनका आमरण अनशन करनेका ही निश्‍चय


कर्ण बोला–राजन् ! आज तुम यहां जो इतनी लघुताका अनुभव कर रहे हो, इसका कोई कारण मेरी समझ में नहीं आता । शत्रुनाशक वीर ! यदि एक बार शत्रुओंके वशमें पड़ जानेपर पाण्‍डवोंने तुम्‍हें छुड़ाया है, तो इसमें कौन अद्भुत बात हो गयी ? कुरूश्रेष्‍ठ ! जो राजकीय सेना में रहकर जीविका चलाते हैं तथा राजा के राज्‍य में निवास करते हैं, वे ज्ञात हों या अज्ञात;उनका कर्तव्‍य है कि वे सदा राजाका प्रिय करें । प्राय: देखा जाता है कि प्रधान पुरूष लड़ते-लड़ते शत्रुओंकी सेनाको व्‍याकुल कर देते हैं । फिर उसी युद्धमें वे बंदी बना लिये जाते हैं और साधारण सैनिकोंकी सहायतासे छूट भी जाते हैं । जो मनुष्‍य सेना जीवी हैं राजाके राज्‍यमें निवास करते हैं, उन सबको मिलकर अपने राजाके हितके लिये यथोचित प्रयत्‍न करना चाहिये । राजन् ! यदि तुम्‍हारे राज्‍य में निवास करनेवाले पाण्‍डवोंने इसी नीतिके अनुसार दैववश तुम्‍हें शत्रुओंके हाथसे छुड़ा दिया है, तो इसमें खेद करनेकी क्‍या बात है ? राजन् ! आप श्रेष्‍ठ नरेश हैं और अपनी सेनाके साथ वनमें पधारे हैं, ऐसी दशा में यहां रहने वाले पाण्‍डव यदि आपके पीछे-पीछे न चलते –आपकी सहायता न करते,तो यह उनके लिये अच्‍छी बात न होती । पाण्‍डव शौर्यसम्‍पन्‍त्र, बलवान् तथा युद्धमें पीठ न दिखाने वाले हैं वे आपके दास तो बहुत पहले ही हो चुके हैं, अत: उन्‍हें आपका सहायक होना ही चाहिये । पाण्‍डवों के पास जितने रत्‍न थे, उन सबका उपभोग आज तुम्‍हीं कर रहे हो; तथापि देखो, पाण्‍डव कितने धैर्यवान हैं कि उन्‍होंने कभी आमरण अनशन नहीं किया । अत: महाबाहो ! तुम्‍हारे इस प्रकार विषाद करनेसे कोई लाभ नहीं है राजन् उठो, तुम्‍हारा कल्‍याण हो । अब यहां अधिक विलम्‍ब नहीं करना चाहिये । नरेश्‍वर ! राजाके राज्‍यमें निवास करनेवाले लोगोंको अवश्‍य ही उसके प्रिय कार्य करने चाहिये । अत: इसके लिये पछताने या विलाप करने की क्‍या बात है ? शत्रुओंका मान मर्दन करनेवाले महाराज ! यदि तुम मेरी यह बात नहीं मानोगे, तो मैं भी तुम्‍हारे चरणोंकी सेवा करता हुआ यहीं रह जाऊंगा । नरश्रेष्‍ठ ! तुमसे अलग होकर मैं जीवित नहीं रहना चाहता राजन् ! आमरण अनशनके लिये बैठ जानेपर तुम समस्‍त राजाओंके उपहास पात्र हो जाओगे । वैशम्‍पायनजी कहते हैं –राजन् ! कर्णके ऐसा कहनेपर राजा दुर्योधनने स्‍वर्ग लोकमें ही जानेका निश्‍चय करके उस समय उठनेका विचार नहीं किया ।

इस प्रकार श्री महाभारत वनपर्वके अन्‍तर्गत घोषयात्रापर्वमें दुर्योधनप्रायोपवेशनके प्रसंगमें कर्णवाक्‍यसम्‍बन्‍धी दो सौ पचासवां अध्‍याय पूरा हुआ ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।