महाभारत वन पर्व अध्याय 271 श्लोक 46-60
एकसप्तत्यधिकद्विशततम (271) अध्याय: वन पर्व (द्रोपदीहरण पर्व )
‘जो अपनी पत्नीका अपहरण करनेवाला तथा राज्यको हड़प लेनेवाला हो, ऐसे शत्रुको युद्धमें पाकर वह प्राणोंकी भीख मांगे, तो भी किसी तरह जीवित नहीं छोड़ना चाहिये’ । द्रौपदीके ऐसा कहनेपर वे दोनो नरश्रेष्ठ जिस ओर जयद्रथ गया था, उसी ओर चल दिये तथा राजा युधिष्ठिर द्रौपदीको लेकर पुरोहित धौम्यके साथ आश्रमपर चल पड़े । उन्होंने आश्रममें प्रवेश करके देखा कि बैठनेके आसन और स्वाध्यायके लिये बनी हुई पर्णशालामें सब वस्तुएँ इधर उधर बिखरी पड़ी थीं । मार्कण्डेय आदि ब्रह्मर्षि वहाँ इकठ्ठे हो रहे थे ।वे सब ब्राह्मण एकाग्रचित्त हो द्रौपदीके लिये ही बार-बार शोक कर रहे थे । इतनेमें ही पत्नीसहित परम बुद्धिमान् युधिष्ठिर अपने भाई नकुल और सहदेवके बीचमें होकर चलते हुए वहाँ आ पहुँचे ।सिन्धु और सौवीरदेशके क्षत्रियोंको जीतकर महाराज लौटे हैं और द्रौपदीदेवी भी पुन: आश्रममें आ गयी हैं, यह देखकर उन ऋषियोंको बडी प्रस्न्त्रता हुई । उन ब्राह्मणोंसे घिरे हुए राजा युधिष्ठिर वहीं बैठ गये और भामिनी कृष्णा नकुल-सहदेवके साथ आश्रमके भीतर चली गयी । इधर भीमसेन और अर्जुनने जब सुना कि हमारा शत्रु जयद्रथ एक कोस आगे निकल गया है, तब वे सवयं अपने घोडोंको हाँकते हुए बड़े वेगसे उसके पीछे दौडे़ । यहाँ वीर पुरूष अर्जुनने एक अद्भुत पराक्रम दिखाया । यद्यपि जयद्रथके घोड़े एक कोस आगे निकल गये थे, तो भी उन्होंने दिव्यास्त्रोंसे अभिमन्त्रित बाणोंद्वारा उन्हें दूरसे ही मार डाला । अर्जुन दिव्यास्त्रसे सम्पन्न थे ।संकटकालमें भी घबराते नहीं थे । इसलिये उन्होंने वह दुष्कर कर्म कर दिखाया ।तत्पश्चात् वे दोनो वीर भीम और अर्जुन जयद्रथके पीछे दौड़े । वह अकेला तो था ही, घोडोंके मारे जानेसे अत्यन्त भयभीत हो गया था । उसके हृदयमें व्याकुलता छा गयी थी । सिन्धुराज अपने घोडोंको मारा गया देख और अलौकिक पराक्रम कर दिखाने वाले अर्जुनको आता जान अत्यन्त दुखी हो गया । अब उसमें केवल भागनेका उत्साह रह गया था, अत: वह वनकी ओर भागा । सिन्धुराजको केवल भागनेमें ही पराक्रम दिखाता देख महाबाहु अर्जुन उसका पीछा करते हुए बोले । ‘राजकुमार ! लौटो, तुम्हें पीठ दिखाकर भागते शोभा नहीं देता । अपने सेवकोंको शत्रुओंके बीचमें छोड़कर कैसे भागे जा रहे हो । क्या इसी बलसे तुम दूसरेकी स्त्रीको हरकर ले जाना चाहते थे । अर्जुनके इस प्रकार ताने देनेपर सिन्धुराज नहीं लौटा, तब महाबली भीम ‘ठहरो, ठहरो’ कहते हुए सहसा उसके पीछे दौड़े । उस समय दयालु अर्जुनने उनसे कहा-‘भैया ! इसकी जान न मारना’ ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत द्रोपदीहरणपर्वमें जयद्रथपलायनविषयक दो सौ इकहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ ।
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