महाभारत वन पर्व अध्याय 274 श्लोक 1-17
चतु:सप्तत्यधिकद्विशततम (274) अध्याय: वन पर्व( रामोपाख्यान पर्व )
मार्कण्डेयजीने कहा-भरतश्रेष्ठ ! श्रीरामचन्द्रजीको भी वनवास तथा स्त्री वियोगका अनुपम दु:ख सहन करना पड़ा था । दुरात्मा राक्षसराज महाबली रावण अपना मायाजाल बिछाकर आश्रमसे उनकी पत्नी सीताको वेगपूर्वक हर ले गया था और अपने कार्यमें बाधा डालने वाले गधराज जटायुको उसने वहीं मार गिराया था । फिर श्रीरामचन्द्रजी भी सुग्रीवकी सेनाका सहारा ले समुद्रपर पुल बांधकर लंकामें गये और अपने तीखे ( आग्नेय आदि ) बाणोंसे उसको भस्म करके वहांसे सीताको वापस लाये । युधिष्ठिरने पूंछा- भगवन् ! श्रीरामचन्द्रजी किस कुलमें प्रकट हुए थे । उनका बल और पराक्रम कैसा था १ रावण किसका पुत्र था और उसका रामचन्द्रजीसे क्या वैर था । भगवन् ! ये सभी बाते मुझे अच्छी प्रकार बताइये । मैं अनायास ही महान् कर्म करने वाले भगवान् श्रीरामका चरित्र सुनना चाहता हूँ । मार्कण्डेयजीने कहा-राजन् ! इक्ष्वाकुवंशमें अज नामसे प्रसिद्ध एक महान् राजा हो गये हैं । उनके पुत्र थे दशरथ, जो सदा स्वाध्यायमें संलग्न रहनेवाले और पवित्र थे । उनके चार पुत्र हुए । वे सब के सब धर्म और अर्थके तत्वको जाननेवाले थे । उनके नाम इस प्रकार हैं-राम, लक्ष्मण, महाबली भरत और शत्रुघ्र । श्रीरामचन्द्रजीकी माताका नाम कौशल्या था, भरतकी माता कैकेयी थी तथा शत्रुओंको संन्ताप देने वाले लक्ष्मण और शत्रुघ्र सुमित्राके पुत्र थे । राजन् ! विदेहदेशके राजा जनककी एक पुत्री थी, जिसका नाम था सीता । उसे स्वयं विधाताने ही भगवान् श्रीरामकी प्यारी रानी होनेके लिये रचा था । जनेश्वर ! इस प्रकार मैंने श्रीराम और सीताके जन्मका वृन्तान्त बताया है । अब रावणके भी जन्मका प्रसंग सुनाऊँगा । सम्पूर्ण जगतके स्वामी, सबकी सृष्टि करनेवाले, प्रजापालक, महावपस्वी और स्वयम्भू साक्षात् भगवान् ब्रह्माजी ही रावणके पितामह थे । ब्रह्माजीके एक परम प्रिय मानसपुत्र पुलस्त्यजी थे । उनसे उनकी गौ नामकी पत्नीके गर्भसे वैश्रवण नामक शक्तिशाली पुत्र उत्पन्न हुआ । राजन् ! वैश्रवण अपने पिताको छोड़कर पितामह की सेवामें रहने लगे । इससे उनपर क्रोध करके पिता पुलस्त्यने स्वयं अपने आपको ही दूसरे रूपमें प्रकट कर लिया । पुलस्त्यके आधे शरीरसे जो दूसरा द्विज प्रकट हुआ, उसका नाम विश्रवा था । विश्रवा वैश्रवणसे बदला लेनेके लिये उनके ऊपर सदा कुपित रहा करते थे । परंतु पितामह ब्रह्माजी उनपर प्रसन्त्र थे; अत: उन्होंने श्री वैष्णवको अमरत्व प्रदान किया और धनका स्वामी तथा लोकपाल बना दिया । पितामहने उनकी महादेवजीसे मैत्री करायी, उन्हें नलकूबर नामक पुत्र दिया तथा राक्षसोंसे भरी हुई लंकाको उनकी राजधानी बनायी । साथ ही उन्हें इच्छानुसार विचरनेवाला पुष्पक नामका एक विमान दिया । इसके सिवा ब्रह्माजीने कुबेरको यक्षोंका स्वमी बना दिया और उन्हें ‘रामराज’ की पदवी प्रदान की ।
इस प्रकार श्री महाभारत वनपर्वके अन्तर्गत रामोपाख्यान पर्वमें राम-रावणजन्मकथनविषयक दो सौ चौहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ ।
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