महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 157 श्लोक 43-49
सप्तपण्चाशदधिकशततम (157) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
भारत ! उस समय द्रोणाचार्य ने कुन्तीकुमार का सामना करना छोडकर क्रोध से लाल आंखें किये वाय-व्यास्त्र के द्वारा द्रुपद की सेना का संहार आरम्भ किया । द्रोणाचार्य की मार खाकर पाण्जाल सैनिक भीमसेन और महात्मा अर्जुन के देखते-देखते भयके मारे भागने लगे । यह देख किरीटधारी अर्जुन और भीमसेन विशाल रथसेनाओं के द्वारा अपनी सेना की रोक-थाम करते हुए सहसा उस ओर लौट पडे । अर्जुन ने द्रोणाचार्य के दाहिने पार्श्व में और भीमसेन ने बायें पार्श्व में महान् बाण समूहों की वर्षा आरम्भ कर दी । महाराज ! उस समय केकय, संजय, महातेजस्वी पाण्जाल, मत्स्य तथा यादव सैनिकों ने भी उन दोनों का अनुसरण किया । उस समय किरीटधारी अर्जुन की मार खाती हुई कौरवी-सेना अंधकार और निद्रा से पीडित हो पुनः तितर-बितर हो गयी । महाराज! द्रोणाचार्य और स्वंय आपके पुत्र दुर्योधन के मना करनेपर भी उस समय आपके योद्धा रोके न जा सके ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तगर्त घटोत्कचवधपर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंग में द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्धविषयक एक सौ सतावनवां अध्याय पूरा हुआ ।
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