महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 213-228
चतुर्दश (14) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
देवता, यक्ष, नाग और राक्षस- इनमें जब संघर्ष होता और परस्पर एक-दूसरे से विनाश का अवसर उपस्थित होता है तब उन्हें अपने स्थान और ऐश्वर्य की प्राप्ति कराने वाले भगवान् शिव ही हैं । बताओं तो सही, अन्धक को, शुक्र को, दुन्दुभि को, महिष को, यक्षराज कुबेर की सेना के राक्षसों को तथा निवातकवच नामक दानवों को वरदान देने और उनका विनाश करने में भगवान् महेश्वर को छोड़कर दूसरा कौन समर्थ है ? पूर्वकाल में महादेवजी के सिवा दूसरे किस देवता के वीर्य की देवासुर गुरू अग्नि के मुख में आहुति दी गयी थी ? जिसके द्वारा सुवर्णमय मेरूगिरी का निर्माण हुआ, वह भगवान् शिव के सिवा और किस देवता का वीर्य था ? दूसरा कौन दिगम्बर कहलाता है ? संसार में दूसरा कौन उर्घ्वरेता है ? किसके आधे शरीर में धर्मपत्नी स्थित रहती है तथा किसने कामदेव को परास्त किया है ? इन्द्र ! बताओं तो सही, किसके उत्कृष्ट स्थान की देवताओं द्वारा प्रशंसा की जाती है ? किसी क्रीड़ा के लिये शमशान भूमि में स्थान नियत किया गया है ? तथा ताण्डव-नृत्य में कौन सर्वोपरि बताया जाता है । भगवान् शंकर के समान दूसरे किसका ऐश्वर्य है ? कौन भूतों के साथ क्रीड़ा करता है ? देव ! किसके पार्षदगण स्वामी के समान ही बलवान् और ऐश्वर्य पर अभिमान करने वाले हैं ? किसका स्थान तीनों लोकों में पूजित और अविचल बताया जाता है। भगवान् शंकर के सिवा दूसरा कौन वर्षा करता है ? कौन तपता है ? और कौन अपने तेज से प्रज्वलित होता है ? किसके औषधियां- खेती-बारी या शस्य-सम्पत्ति बढ़ती है ? कौन धन का धारण-पोषण करता है ? कौन चराचर प्राणियों सहित त्रिलोकी में इच्छानुसार क्रीड़ा करता है ? योगजन ज्ञान, सिद्धि और क्रिया-योगद्वारा भगवान् शिव की ही सेवा करते हैं तथा ऋषि, गन्धर्व और सिद्धगण उन्हें ही परम कारण मानकर उनका आश्रय लेते हैं । देवता और असुर सब लोग कर्म, यज्ञ और क्रिया-योग द्वारा सदा जिनकी सेवा करते हैं, उन कर्मफल रहित महोदव जी को मैं सबका कारण कहता हूं ।
महादेवजी का परमपद स्थूल, सूक्ष्म, उपमा रहित, इन्द्रियों द्वारा अग्राहृय, सगुण, निर्गुण तथा गुणों का नियामक है । इन्द्र ! जो सम्पूर्ण विश्व के अधीश्वर, प्रकृति के भी नियामक, लोक (जगत् की सृष्टि) तथा सम्पूर्ण लोकों के संहार के भी कारण हैं, भूत, वर्तमान और भविष्य – तीनों काल जिनके ही स्वरूप हैं, जो सबके उत्पादक एवं कारण हैं, क्षर-अक्षर, अव्यक्त, विद्या अविद्या, कृत-अकृत तथा धर्म और अधर्म जिनसे ही प्रकट हुए हैं, उन महादेवजी को ही मैं सबका परम कारण बताता हूं । देवेन्द्र ! सृष्टि और संहार के कारणभूत देवाधिदेव भगवान रूद्र ने जो भगचिन्हिृत लिंग मूर्ति धारण की है, उसे आप यहां प्रत्यक्ष देख लें । यह उनके कारण-स्वरूप का परिचायक है । इन्द्र ! मेरी माता ने पहले कहा था कि महादेव जी के अतिरिक्त अथवा उनसे बढ़कर कोई लोकरूपी कार्य का कारण नहीं हैं, अत: यदि किसी अभीष्ट वस्तु के पाने की तुम्हारी इच्छा हो तो भगवान् शंकर की ही शरण लो ।
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