महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 149 श्लोक 81-86
एकोनपन्चाशदधिकशततम (149) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
633 अर्चिष्मान्- चन्द्र-सूर्य आदि समस्त ज्योतियों को देदीप्यमान करने वाली अतिशय प्रकाशमय अनन्त किरणों से युक्त, 634 अर्चितः- ब्रह्मादि समस्त लोकों से पूजे जाने वाले, 635 कुम्भः- घट की भाँति सबके निवासस्थान, 636 विशुद्धात्मा- परम शुद्ध निर्मल आत्मस्वरूप, 637 विशोधनः- स्मरणमात्र से समस्त पापों का नाश करके भक्तों के अन्तःकरण को परम शुद्ध कर देने वाले, 638 अनिरूद्धः- जिनको कोई बाँधकर नहीं रख सके- ऐसे चतुर्व्यूह में अनिरूद्धस्वरूप्, 639 अप्रतिरथः- प्रतिपक्ष से रहित, 640 प्रद्युम्नः- परम श्रेष्ठ अपार धन से युक्त चतुर्व्यूह में प्रद्युम्नस्वरूप, 641 अमितविक्रमः- अपार पराक्रमी।। 81।। 642 कालनेमिनिहा- कालनेमि नामक असुर को मारने वाले, 643 वीरः- परम शूरवीर, 644 शौरिः- शूरकुल में उत्पन्न होने वाले श्रीकृष्णस्वरूप, 645 शूरजनेश्वरः- अतिशय शूरवीरता के कारण इन्द्रादि शूरवीरों के भी इष्ट, 646 त्रिलोकात्मा- अन्तर्यामीरूप से तीनों लोकों के आत्मा, 647 त्रिलोकेशः- तीनों लोकों के स्वावमी, 648 केशवः- ब्रह्मा, विष्णु और शिव-स्वरूप, 649 केशिहा- केशी नाम के असुर को मारने वाले, 650 हरः- स्मरणमात्र से समस्त पापों का हरण करने वाले।। 82।। 651 कामदेवः- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- इन चारों पुरूषार्थों को चाहने वाले मनुष्यों द्वारा अभिलषित समस्त कामनाओं के अधिष्ठाता परमदेव, 652 कामपालः- सकामी भक्तों की कामनाओं की पूर्ति करने वाले, 653 कामी- अपने प्रियतमों को चाहने वाले, 654 कान्तः- परम मनोहर स्वरूप, 655 कृतागमः- समस्त वेद और शास्त्रों को रचने वाले, 656 अनिर्देश्यवपुः- जिनके दिव्य स्वरूप का किसी प्रकार भी वर्णन नहीं किया जा सके- ऐसे अनिर्वचनीय शरीरवाले, 657 विष्णुः- शेषशायी भगवान् विष्णु, 658 वीरः-बिना ही पैरों के गमन करने की दिव्य शक्ति से युक्त, 659 अनन्तः- जिनके स्वरूप, शक्ति, ऐश्वर्य, सामथ्र्य और गुणों का कोई भी पार नहीं पा सकता- ऐसे अविनाशी गुण, प्रभाव और शक्तियों से युक्त, 660 धनन्जयः- अर्जुनरूप से दिग्विजय के समय बहुत- सा धन जीतकर लाने वाले। 661 ब्रह्मण्यः- तप, वेद, ब्राह्मण और ज्ञान की रक्षा करने वाले, 662 ब्रह्मकृत्- पूर्वोक्त तप आदि की रचना करने वाले, 663 ब्रह्मा- ब्रह्मारूप से जगत् को उत्पन्न करने वाले, 664 ब्रह्म- सच्चिदानन्दस्वरूप, 665 ब्रह्मविवर्धनः- पूर्वोक्त ब्रह्मशब्दवाची तप आदि की वृद्धि करने वाले, 666 ब्रह्मवित्- वेद और वेदार्थ को पूर्णतया जानने वाले, 667 ब्राह्मणः- समस्त वस्तुओं को ब्रह्मरूप से देखने वाले, 668 ब्रह्मी- ब्रह्मशब्दवाची तपादि समस्त पदार्थों के अधिष्ठान, 669 ब्रह्मज्ञः- अपने आत्मस्वरूप ब्रह्मशब्दवाची वेद को पूर्णतया यथार्थ जानने वाले, 670 ब्राह्मणप्रियः- ब्राह्मणों को अतिशय प्रिय मानने वाले।। 84।। 671 महाक्रमः- बडे़ वेग से चलने वाले, 672 महाकर्मा- भिन्न-भिन्न अवतारों में नाना प्रकार के महान् कर्म करने वाले, 673 महातेजाः- जिसके तेज से समस्त सूर्य आदि तेजस्वी देदीप्यमान होते हैं- ऐसे महान् तेजस्वी, 674 महोरगः- बड़े भारी सर्प यानी वासुकिस्वरूप, 675 महाक्रतुः- महान् यज्ञस्वरूप, 676 महायज्वा- लोकसंग्रह के लिये बडे़-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान करने वाले, 677 महायज्ञः- जपयज्ञ आदि भगवत्प्राप्ति के साधन रूप समस्त यज्ञ जिनकी विभूतियाँ हैं- ऐसे महान् यज्ञस्वरूप, 678 महाहविः- ब्रह्मरूप अग्नि में हवन किये जाने योग्य प्रपन्चरूप हवि जिनका स्वरूप है- ऐसे महान् हविःस्वरूप।679 स्तव्यः- सबके द्वारा स्तुति किये जाने योग्य, 680 स्तवप्रियः- स्तुति से प्रसन्न होने वाले, 681 स्तोत्रम्- जिनके द्वारा भगवान् के गुण-प्रभाव का कीर्तन किया जाता है, वह स्तोत्र, 682 स्तुतिः- स्तवनक्रियास्वरूप, 683 स्तोता- स्तुति करने वाले, 684 रणप्रियः- युद्ध में पे्रम करने वाले, 685 पूर्णः- समस्त ज्ञान, शक्ति, ऐश्वर्य और गुणों से परिपूर्ण, 686 पूरयिता- अपने भक्तों को सब प्रकार से परिपूर्ण करने वाले, 687 पुण्यः- स्मरणमात्र से पापों का नाश करने वाले पुण्यस्वरूप, 688 पुण्यकीर्तिः- परमपावन कीर्तिवाले, 689 अनामयः- आन्तरिक और बाह्म सब प्रकार की व्याधियों से रहित।
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