महाभारत आदि पर्व अध्याय 154 श्लोक 20-39
चतुष्पञ्चादशधिकशततम (154) अध्याय: आदि पर्व (जतुगृह पर्व)
‘शुभे ! सुमध्यमे ! जब तक तुम्हें पुत्र की उत्पत्ति न हो जाय तभी तक मैं तुम्हारे साथ विहार के लिये चलूंगा। वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! तब ‘ऐसा ही होगा’ यह प्रतिज्ञा करके हिडिम्बा राक्षसी भीमसेन को साथ ले वहां से ऊपर आकाश में उड़ गयी। उसने रमणीय पर्वतशिखरों पर, देवताओं के निवास स्थानों में तथा जहां बहुत से पशु-पक्षी मधुर शब्द करते रहते हैं, ऐसे सुरम्य प्रदेशों में सदा परम सुन्दर रुप धारण करके, सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित हो मीठी-मीठी बातें करके पाण्डुनन्दन भीमसेन का सुख पहुंचाया। इसीं प्रकार पुष्पित वृक्षों और लताओं से सुशोभित दुर्गम वनों में, कमल और उत्पल आदि से अलंकृत रमणीय सरोवरों में, नदियों के द्वीपों में तथा जहां की वालुका वैदूर्य मणि के समान है, जिनके घाट, तटवर्ती वन तथा जल सभी सुन्दर एवं पवित्र हैं, उन पर्वतीय नदियों में, विकसित वृक्षों और लता-वल्लरियों से विभूषित विचित्र काननों में, हिमवान् पर्वत के कुञ्जों और भांति-भांति की गुफाओं में, ,खिले हुए कमल समूह से युक्त निर्मल जलवाले सरोवरों में, मणियों और सुवर्ण से सम्पन्न समुद्र-तटवर्ती प्रदेशों में, छोटे-छोटे सुन्दर तालाबों में, बड़े-बड़े शाल वृक्षों के जंगलो में, सभी ॠतुओं के फलों से सम्पन्न तपस्वी मुनियों के सुरम्य आश्रमों में तथा मानसरोवर एवं अन्य जलाशयों में घूम-फिरकर हिडिम्बा ने परम सुन्दर रुप धारण करके पाण्डुनन्दन भीमसेन के साथ रमण किया। वह मन के समान वेग से चलने वाली थी, अत: उन-उन स्थानों में भीमसेन को आनन्द प्रदान करती हुई विचरती रहती थी । कुछ काल के पश्चात् उस राक्षसी ने भीमसेन से एक महान् बलवान् पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसकी आंखें विकराल, मुख विशाल और कान शंक्ख के समान थे। वे देखने में बड़ा भयंकर जान पड़ता था। उसकी आवाज बड़ी भयानक थी। सुन्दर लाल-लाल ओठ, तीखी दाढें, महान् बल, बहुत बड़ा धनुष,महान् पराक्रम, अत्यन्त धैर्य और साहस, बड़ी-बड़ी भुजाएं, महान् वेग और विशाल शरीर-ये उसकी विशेषताएं थीं। वह महामायावी राक्षस अपने शत्रुओं का दमन करने वाला था। उसकी नाक बहुत बड़ी, छाती चौड़ी तथा पैरों की दोनों पिंडलियां टेढ़ी और उंची थी। यद्यपि उसका जन्म मनुष्य से हुआ था तथापि उसकी आकृति और शक्ति अमानुषिक थी। उसका वेग भंयकर और बल महान् था। वह दूसरे पिशाचों तथा राक्षसों से बहुत अधिक शक्तिशाली था। राजन् ! अवस्था में बालक होने पर भी वह मनुष्यों में युवक-सा प्रतीत होता था। उस बलवान् वीर ने सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों में बड़ी निपुणता प्राप्त की थी। राक्षसियां जब गर्भ धारण करती हैं, तब तत्काल ही उसको जन्म दे देती हैं। वे इच्छानुसार रुप धारण करने वाली और नाना प्रकार के रुप बदलनेवाली होती हैं। उस महान् धनुर्धर बालक ने पैदा होते ही पिता और माता के चरणों में प्रणाम किया। उसके सिर में बाल नहीं उगे थे। उस समय पिता और माता ने उसका इस प्रकार नामकरण किया। बालक की माता ने भीमसेन से कहा- ‘इसका घट (सिर) उत्कच अर्थात् केशरहित हैं।‘ उसके इस कथन से ही उसका नाम घटोत्कच हो गया। घटोत्कच का पाण्डवों के प्रति बड़ा अनुराग था और पाण्डवों को भी वह बहुत प्रिय था। वह सदा उनकी आज्ञा के अधीन रहता था।
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