महाभारत आदि पर्व अध्याय 164 श्लोक 1-12

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चतु:षष्‍टयधिकशततम (164) अध्‍याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व )

महाभारत: आदि पर्व: चतु:षष्‍टयधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद


पाण्‍डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएं सुनना

जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन् ! पुरुषसिंह पाण्‍डवों ने उस प्रकार बकासुर का वध करने के पश्‍चात् कौन-सा कार्य किया ? वैशम्‍पायनजी ने कहा हैं- राजन् ! बकासुर का वध करने के पश्‍चात् पाण्‍डव लोग ब्रह्मतत्‍व का प्रतिपादन करने वाले उपनिषदों का स्‍वाध्‍याय करते हुए वहीं ब्राह्मण के घर में रहने लगे। तदनन्‍तर कुछ दिनों के बाद एक कठोर नियमों का पालन करनेवाला ब्राह्मण ठहरने के लिये उन ब्राह्मण देवता के घर पर आया। उन विप्रवर का सदा घर पर आये हुए सभी अतिथियों की सेवा करने का व्रत था। उन्‍होंने आगन्‍तुक ब्राह्मण की भली-भांति पूजा करके उसे ठहरने के लिये स्‍थान दिया। वह ब्राह्मण बड़ी सुन्‍दर एवं कल्‍याणमयी कथाएं कह रहा था, (अत: उन्‍हें सुनने के लिये) सभी नरश्रेष्‍ठ पाण्‍डव माता कुन्‍ती के साथ उसके निकट जा बैठे। उसने अनेक देशों, तीर्थों, नदियों, राजाओं, नाना प्रकार के आश्‍चर्य जनक स्‍थानों तथा नगरों का वर्णन किया। जनमेजय ! बातचीत के अन्‍त में उस ब्राह्मण ने वहां यह भी बताया कि पञ्चालदेश में यज्ञसेनकुमारी द्रौपदी का अद्रुत स्‍वयंवर होने जा रहा है। धृष्‍टद्युम्‍न और शिखण्‍डी की उत्‍पत्ति तथा द्रुपद के महायज्ञ में कृष्‍णा (द्रौपदी) का बिना माता के गर्भ के ही (यज्ञ की वेदी से) जन्‍म होना आदि बातें भी उसने कहीं। उस महात्‍मा ब्राह्मण का इस लोक में अत्‍यन्‍त अद्रुत प्रतीत होनेवाला यह वचन सुनकर कथा के अन्‍त में पुरुषशिरोमणि पाण्‍डवों ने विस्‍तारपूर्वक जानने के लिये पूछा पाण्‍डव बोले-द्रुपद पुत्र धृष्‍टद्युम्‍न यज्ञाग्रि से और कृष्‍णा का यज्ञवेदी के मध्‍यभाग से अद्रुत जन्‍म किस प्रकार हुआ ? धृ‍ष्‍टद्युम्‍न महाधनुर्धर द्रोण से सब अस्‍त्रों की शिक्षा किस प्रकार प्राप्‍त की ? ब्रह्मन् ! द्रुपद और द्रोण में किस प्रकार मैत्री हुई ? और किस कारण से उनमें वैर पड़ गया ? वैशम्‍पायनजी कहते हैं-राजन् ! पुरुषशिरोमणि पाण्‍डवों के इस प्रकार पूछने पर आगन्‍तुक ब्राह्मण ने उस समय द्रौपदी की उत्‍पत्ति का सारा वृत्‍तान्‍त सुनाना आरम्‍भ किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत चैत्ररथपर्व में ब्राह्मणविषयक एक सौ चौसठवां अध्‍याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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