महाभारत आदि पर्व अध्याय 95 श्लोक 76-90

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पञ्चनवतितम (95) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: पञ्चनवतितम अध्‍याय: श्लोक 76-90 का हिन्दी अनुवाद

वहां कुशलता पूर्वक रहते हुए उन्‍होंने द्रौपदी से पांच पुत्र उत्‍पन्न किये। युधिष्ठिर ने प्रतिविन्‍घ्‍य को, भीमसेन ने सुतसोम को, अर्जुन ने श्रुतकीर्ति को, नकुल ने शतानीक को और सहदेव ने श्रुतकर्मा को जन्‍म दिया। युधिष्ठिर ने शिबिदेश के राजा गोवासन की पुत्री देविका को स्‍वयंवर में प्राप्त किया और उसके गर्भ से एक पुत्र को जन्‍म दिया; जिसका नाम यौधेय था। भीमसेन ने भी काशिराज की कन्‍या बलन्‍धरा के साथ विवाह किया; उसे प्राप्त करने के लिये बल एवं पराक्रम का शुल्‍क रक्‍खा गया था अर्थात यह शर्त थी कि जो अधिक बलवान् हो, वही उसके साथ विवाह कर सकता है। भीमसेन से उसके गर्भ से एक पुत्र उत्‍पन्न किया, जिसका नाम सर्वग था। अर्जुन ने द्वारिका में जाकर मंगलमय वचन बोलने वाली वासुदेव की बहिन सुभद्रा को पत्नीरुप में प्राप्त किया और उसे लेकर कुशलता पूर्वक अपनी राजधानी में चले आये। वहां उसके गर्भ से अत्‍यन्‍त गुण सम्‍पन्न अभिमन्‍यु नामक पुत्र को उत्‍पन्न किया; जो वसुदेवनन्‍दन भगवान् श्रीकृष्‍ण को बहुत प्रिय था। नकुल ने चेदि नेरश की पुत्री करेणुमती को पत्नी रुप में प्राप्त किया और उसके गर्भ से निरमित्र नामक पुत्र को जन्‍म दिया। सहदेव ने भी मद्रदेश की राजकुमारी विजया को स्‍वयंवर में प्राप्त किया। वह मद्रराज द्युतिमान् की पुत्री थी। उसके गर्भ से उन्‍होंने सुहोत्र नामक पुत्र को जन्‍म दिया। भीमसेन ने पहले ही हिडिम्‍बा के गर्भ से घटोत्‍कच नामक राक्षस जातीय पुत्र को उत्‍पन्न किया था। इस प्रकार ये पाण्‍डवों के ग्‍यारह पुत्र हुए। इनमें से अभिमन्यु का ही वंश चला। अभिमन्‍यु ने विराट की पुत्री उत्तरा के साथ विवाह किया था। उसके गर्भ से अभिमन्‍यु के एक पुत्र हुआ; जो मरा हुआ था। पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्‍ण के आदेश से कुन्‍ती ने उसे अपनी गोद में ले लिया। उन्‍होंने यह आश्वासन दिया कि छ: महीने के इस मरे हुए बालक को मैं जीवित कर दूंगा। अश्वत्‍थामा के अस्त्र की अग्नि से झुलसकर वह असमय में ( समय से पहले ) ही पैदा हो गया था। उसमें बल, वीर्य और पराक्रम नहीं था। परंतु भगवान् कृष्‍ण ने उसे अपने तेज से जीवित कर दिया। इसको जीवित करके वे इस प्रकार बोले- ‘इस कुल के परिक्षण (नष्ट) होने पर इसका जन्‍म हुआ है; अत: यह बालक परिक्षित् नाम से विख्‍यात हो।‘ परिक्षित् ने तुम्‍हारी माता माद्रवती के साथ विवाह किया, जिसके गर्भ से तुम जनमेजय नामक पुत्र उत्‍पन्न हुए। तुम्‍हारी पत्नी वपुष्टमा के गर्भ से दो पुत्र उत्‍पन्न हुए हैं- शतानीक और शंक्कुकर्ण। शतानीक की पत्नी विदेह राजकुमारी के गर्भ से उत्‍पन्न हुए पुत्र का नाम है अश्वेधदत्त। यह पूरु तथा पाण्‍डवों के वंश का वर्णन किया गया; जो धन और पुण्‍य की प्राप्ति कराने वाला एवं परम पवित्र है, नियम पारयण ब्राह्मणों, अपने धर्म में स्थित प्रजापालक क्षत्रियों, वैश्‍यों तथा तीनों वर्णों की सेवा करने वाले श्रद्धालु शूद्रों को भी सदा इसका श्रवण एवं स्‍वाध्‍याय करना चाहिये। जो पुण्‍यात्‍मा मनुष्‍य मन को वश में करके ईर्ष्‍या छोड़कर सबके प्रति मैत्रीभाव रखते हुए वेदपरायण हो इस सम्‍पूर्ण पुण्‍यमय इतिहास को सुनायेंगे अथवा सुनेंगे वे स्‍वर्गलोक के अधिकारी होंगे और देवता, ब्राह्मण तथा मनुष्‍यों के लिये सदैव आदरणीय तथा पूजनीय होंगे। जो ब्राह्मण आदि वर्णों के लोग मात्‍सर्यरहित, मैत्रीभाव से संयुक्त और वेदाध्‍ययन से सम्‍पन्न हो श्रद्धापूर्वक भगवान् व्‍यास के द्वारा कहे हुए इस परम पावन महाभारत ग्रन्‍थ को सुनेंगे, वे भी स्‍वर्ग के अधिकारी और पुण्‍यात्‍मा होंगे तथा उनके लिये इस बात का शोक नहीं रह जायगा कि उन्‍होंने अमुक कर्म क्‍यों किया और अमुक कर्म क्‍यों नहीं किया। इस विषय में यह श्लोक प्रसिद्ध है- ‘यह महाभारत वेदों के मसान पवित्र, उत्तम तथा धन, यश और आयु की प्राप्ति कराने वाला है। मन को वश में रखने वाले साधु पुरुषों को सदैव इसका श्रवण करना चाहिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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