महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 49 श्लोक 1-13

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एकोनपञ्चाशतम (49) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: एकोनपञ्चाशतम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

नाना प्रकार के पुत्रों का वर्णन।

युधिष्ठिरने पूछा- तात! कुरुश्रेष्‍ठ! आप वर्णों के सम्‍बन्‍ध में पृथक-पृथक यह बताइये कि कैसी स्‍त्री के गर्भ से कैसे पुत्र उत्‍पन्‍न होते हैं और कौन-से पुत्र किसके साथ होते हैं? पुत्रों के निमित बहुत-सी विभिन्‍न बातें सुनी जाती हैं।राजन! इस विषय में हम मोहित होने के कारण कुछ निश्‍चय नहीं कर पाते, अत‍: आप हमारे इस संशय का निवारण करें। भीष्‍म ने कहा- जहाँ पति-पत्‍नी के संयोग में किसी तीसरे का व्‍यवधान नहीं है अर्थात जो पति के वीर्य से ही उत्‍पन्‍न हुआ है, उस ‘अनन्‍तरज’ अर्थात ‘औरस’ पुत्र को अपनी आत्‍मा ही समझना चाहिये। दूसरा पुत्र ‘निरुक्‍तज’ होता है। तीसरा ‘प्रसृतज’ होता है(निरुक्‍तज और प्रसृतज दोनों क्षेत्र के ही दो भेद हैं)। पतित पुरुष का अपनी स्‍त्री के गर्भ से स्‍वयं ही उत्‍पन्‍न किया हुआ पुत्र चौथी श्रेणी का पुत्र हैं। इसके सिवा ‘दत्तक’ और ‘क्रीत’ पुत्र भी होते हैं। ये कुल मिलाकर छ: हुए। सातवाँ है ‘अध्‍यूढ़’ पुत्र (जो कुमारी-अवस्‍था में ही माताके पेट में आ गया और विवाह करने वाले के घरमें आकर जिसका जन्‍म हुआ)। आठवाँ ‘कानीन’ पुत्र होता है। इनके अतिरिक्‍त छ: ‘अपध्‍वंसज’ (अनुलोम) पुत्र होते हैं तथा छ: ‘अपसद’ (प्रतिलोम) पुत्र होते हैं।इस तरह इन सबकी संख्‍या बीस हो जाती है। भारत! इस प्रकार ये पुत्रों के भेद बताये गये। तुम्‍हें इन सबको पुत्र ही जानना चाहिये। युधिष्ठिर ने पूछा-दादाजी! छ: प्रकारके अपध्‍वंसज पुत्र कौन-से हैं तथा अपसद किन्‍हें कहा गया है? यह सब आप मुझे यथार्थ रूप से बताइये। भीष्‍म जी ने कहा-युधिष्ठिर! ब्राहामण के क्षत्रिय, वैश्‍य और शुद्र-इन तीन वर्णों की स्त्रियों से जो पुत्र उत्‍पन्‍न होते हैं वे तीन प्रकार के अपध्‍वंसज कहे‍ गये हैं। भारत! क्षत्रिय के वैश्‍य और शूद्र जाति की स्त्रियों से जो पुत्र होते हैं वे दो प्रकार के अपध्‍वंसज हैं, तथा वैश्‍य के शुद्र-जाति की स्‍त्री से जो पुत्र होता है वह भी एक अपध्‍वंसज है। इन सबका इसी प्रकरण में दिग्‍दर्शन कराया गया है। इस प्रकार ये छ: अपध्‍वंसज अर्थात अनुलोम पुत्र कहे गये हैं। अब ‘अपसद’ अर्थात 'प्रतिलोम’ पुत्रों का वर्णन सुनो। ब्राहाणी, क्षत्रिया तथा वैश्‍या-इन वर्णों की स्त्रियों के गर्भ से शूद्र द्वारा जो पुत्र उत्‍पन्‍न किये जाते हैं, वे क्रमश: चाण्‍डाल, व्रात्‍य और वैघ्‍ कहलाते हैं। ये अपसदों के तीन भेद है। ब्राहामणी और क्षत्रिया के द्वारा गर्भ से वैश्‍य द्वारा जो पुत्र उत्‍पन्‍न किये जाते हैं, वे क्रमश: मागध और वामक नाम वाले दो प्रकार के अपसद देखे गये हैं। क्षत्रिय के एक ही वैसा पुत्र देखा जाता है, जो ब्राहामणी से उत्‍पन्‍न होता है। उसकी सूत संज्ञा है। ये छ: अपसद अर्थात प्रतिलोम पुत्र माने गये हैं। नरेश्‍वर! इन पुत्रोंको मिथ्‍या नही बताया जा सकता। युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! कुछ लोग अपनी पत्‍नी के गर्भ से उत्‍पन्‍न हुए किसी भी प्रकार के पुत्र को अपना ही पुत्र मानते हैं और कुछ लोग अपने वीर्य से उत्‍पन्‍न हुए पुत्र को ही सगा पुत्र समझते हैं। क्‍या वे दोनों समान कोटि के पुत्र हैं? इन पर किसका अधिकार है? इन्‍हें जन्‍म देने वाली स्‍त्री के पति का या गर्भाधान करने वाले पुरुष का? यह मुझे बताइये। भीष्‍म जी ने कहा- राजन! अपने वीर्य से उत्‍पन्‍न हुआ पुत्र तो सगा पुत्र है ही, क्षेत्रज पुत्र भी यदि गर्भस्‍थापन करने वाले पिता के द्वारा छोड़ दिया गया हो तो वह अपना ही होता है। यही बात समय-भेदन करके अध्‍यूढ पुत्रके विषय में भी समझनी चाहिये। तात्‍पर्य यह कि वीर्य डालने वाले पुरुष ने यदि अपना स्‍वत्‍व हटा लिया हो तब वे क्षेत्रज और अध्‍यूढ पुत्र क्षेत्रपति के ही माने जाते हैं। अन्‍यथा उन पर वीर्यदाता का ही स्‍वत्‍व है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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