महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 69 श्लोक 17-22

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एकोनसप्ततितम (69) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: एकोनसप्ततितम अध्याय: श्लोक 17-22 का हिन्दी अनुवाद

जो गौदान ग्रहण करके धर्माचरण करता है, उसके धर्म का जो कुछ भी फल होता है, उस सम्पूर्ण धर्म के एक अंश का भागी दाता भी होता है, क्योंकि उसी के लिये उसके गौदान में प्रवृति हुई थी । जो जन्म देता है, जो भय से बचाता है तथा जो जीविका देता है- ये तीनों ही पिता के तुल्य हैं। गुरूजनों की सेवा सारे पापों का नाश कर देती है। अभिमान महान यश को नष्ट कर देता है। तीन पुत्र पुत्र हीनता के दोष के निबारण कर देते हैं और दूध देने वाली दस गौऐं हो तो जीविका के अभाव को दूर कर देती हैं। जो विदान्तनिष्ट, वहुज्ञ ज्ञानानन्द से तृप्त, जीतिन्द्रिय, शिष्ट, मन को वश में रखने वाला, यत्नशील, समस्त प्राणियों के प्रति सदा प्रिय वचन बोलने वाला, भूख के भय से अनुचित कर्म न करने वाला, मृदुल, शान्त, अतिथि प्रेमी, सब पर समान भाव रखने वाला और स्त्री पुत्र आदि कुटम्ब से युक्त हो उस ब्राह्माण की जीविका का अवश्‍य प्रबन्ध करना चाहिये।शुभ पात्र को गौदान करने से जो लाभ होते हैं, उसका धन ले लेने पर उतना ही पाप लगता है; अतः किसी भी अवस्था में ब्राह्माणों के धन का अपहरण न करें तथा उनकी स्त्रियों का संसर्ग दूर से ही त्याग दें। जहां ब्राह्माणों की स्त्रियों अथवा उनके धन का अपहरण होता हो, वहां शक्ति रहते हुए जो उन सवकी रक्षा करते हैं, उन्हें नमस्कार है। जो उनकी रक्षा नहीं करते, वे मुर्दों के समान हैं। सूर्य पुत्र यमराज ऐसे लोगों का वध कर डालते हैं, पतिदिन उन्हें यातना देते और डांटते-फटकारते हैं और नरक से उन्हें कभी छुटकारा नहीं देते हैं। इसी प्रकार गौओं के संरक्षण और पीड़न से भी शुभ और अशुभ की प्राप्ति होती है। विशेषतः ब्राह्माणों और गौओं के अपने द्वारा सुरक्षित होने पर पुण्य और मारे जाने पर पाप होता है।।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें गोदान का माहत्म्यविषयक उनहत्तरवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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