महाभारत आदि पर्व अध्याय 186 श्लोक 18-30

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षडशीत्‍यधिकशततम (186) अध्‍याय: आदि पर्व (स्‍वयंवर पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: षडशीत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 18-30 का हिन्दी अनुवाद

परंतु वे उस सुदृढ धनुष पर हाथ से कौन कहे, मन से भी प्रत्‍यञ्चा न चढ़ा सके। अपने बल, शिक्षा और गुण के अनुसार उस पर जोर लगाते समय वे सभी नरेन्‍द्र उस सुद्दढ़ एवं चमचमाते हुए धनुष के झटके से दूर फेंक दिये जाते और लड़खड़ाकर धरती पर जा गिरते थे। फिर तो उनका उत्‍साह समाप्‍त हो जाता, किरीट और हार खिसककर गिर जाते और वे लंबी सांसें खींचते हुए शान्‍त होकर बैठ जाते थे। उस सुद्दढ़ धनुष के झटके से जिनके हार, बाजूबंद और कड़े आदि आभूषण दूर जा गिरे थे, वे नरेश उस समय द्रौपदी को पाने की आशा छोड़कर अत्‍यन्‍त व्‍यथित हो हाहाकार कर उठे। उन सब राजाओं की यह अवस्‍था देख धनुर्धारियों में श्रेष्‍ठ कर्ण उस धनुष के पास गया और तुरंत ही उसे उठाकर उस पर प्रत्‍यञ्चा चढ़ा दी और शीघ्र ही उस धनुष पर वे पांचों बाण जोड़ दिये। अग्रि, चन्‍द्रमा और सूर्य से भी अधिक तेजस्‍वी सूर्य-पुत्र कर्ण द्रौपदी के प्रति आसक्‍त होने के कारण जब लक्ष्‍य भेदने की प्रति‍ज्ञा करके उठा, तब उसे देखकर महाधनुर्धर पाण्‍डवों ने यह विश्‍वास कर लिया कि अब यह इस उत्‍तम लक्ष्‍य को भेदकर पृथ्‍वी पर गिरा देगा। कर्ण को देखकर द्रौपदी ने उच्‍च स्‍वर से यह बात कही- ‘मैं सूत जाति के पुरुष का वरण नहीं करुंगी’। यह सुनकर कर्ण ने अमर्षयुक्‍त हंसी के साथ सूर्य की ओर देखा और उस प्रकाशमान धनुष को डाल दिया। इस प्रकार जब वे सभी क्षत्रिय सब ओर से हट गये, तब यमराज के समान बलवान्, घीर, वीर, चेदिराज दमघोषपुत्र महाबुद्धिमान् शिशुपाल धनुष उठाने के लिये चला। परंतु उस पर हाथ लगाते ही वह घुटनों के बल पृथ्‍वी-पर गिर पड़ा। तदनन्‍तर महापराक्रमी एवं महाबली राजा जरांसध धनुष-के निकट आकर पर्वत की भांति अवि‍चलभाव से खड़ा हो गया। परंतु उठाते समय धनुष का झटका खाकर वह भी घुटने के बल गिर पड़ा। तब वहां से उठकर राजा जरासंध अपने राज्‍य को चला गया। तत्‍पश्‍चात् महावीर एवं महाबली भद्रराज शल्‍य आये। पर उन्‍होंने भी उस धनुष को चढ़ाते समय धरती पर घुटने टेक दिये। तदनन्‍तर शत्रुओं का संताप देनेवाले धृतराष्‍ट्र पुत्र महाबली राजा दुर्योधन सहसा अपने भाइयों के बीच से उठकर खड़ा हो गया। उनके अस्‍त्र-शस्‍त्र बड़े मजबूत थे। वह स्‍वाभिमानी होने के साथ ही समस्‍त राजोचित लक्षणों से सम्‍पन्‍न था। द्रौपदी को देखकर उसका ह्रदय हर्ष से खिल उठा और वह शीघ्रतापूर्वक धनुष के पास आया। उस धनुष को हाथ में लेकर वह चापधारी इन्‍द्र के समान शोभा पाने लगा। राजा दुर्योधन उस मजबूत धनुष पर जब प्रत्‍यञ्चा चढ़ाने लगा, उस समय उसके अंगुलियों के बीच में झटके से ऐसी चोट लगी कि वह चित्‍त लोट गया। धनुष की चोट खाकर दुर्योधन अत्‍यन्‍त लज्जित होता हुआ-सा अपने स्‍थान पर लौट गया।। (जब इस प्रकार बडे़-बडे़ प्रभावशाली राजा लक्ष्‍यवेध न कर सके, तब) सारा समाज सम्‍भ्रम (घबराहट) में पड़ गया और लक्ष्‍यवेध की बातचीत तक बंद हो गयी, उसी समय प्रमुख वीर कुन्‍तीनन्‍दन अर्जुन ने उस धनुष पर प्रत्‍यञ्चा चढ़ाकर उस पर बाण-संधान करने की अभिलाषा की। यह देख देवता और दानवों के आदरणीय, वृष्णिवंश के प्रमुख वीर उदारबुद्धि भगवान् श्रीकृष्‍ण बलरामजी के साथ उनका हाथ दबाते हुए बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्‍हें यह विश्‍वास हो गया कि द्रौपदी अब पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन के हाथ में आ गयी। पाण्‍डवों ने अपना रुप छिपा रक्‍खा था, अत: दूसरे कोई राजा या प्रमुख वीर उन्‍हें पहचान न सके।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत स्‍वयंवर पर्व में सम्‍पूर्ण राजाओं के विमुख होने से सम्‍बन्‍ध रखने वाला एक सौ छियासीवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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