महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 237 श्लोक 13-25

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सप्‍तत्रिंशदधिकद्विशततम (237) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: सप्‍तत्रिंशदधिकद्विशततम श्लोक 13-25 का हिन्दी अनुवाद

जंगम जीवों में भी बहुत पैरवाले और दो पैरवाले ये दो तरह के प्राणी होते हैं । इनमें बहुत पैरवालों की अपेक्षा दो पैरवालेअनेक प्राणी श्रेष्ठंबताये गये हैं । दो पैरवाले जंगम प्राणी भी दो प्रकार के कहे गये हैं-पार्थिव (मनुष्य ) और अपार्थिव (पक्षी) । अपार्थिवों से पार्थिव श्रेष्ठा हैं, क्योयकि वे अन्नथ भोजन करते हैं । पार्थिव (मनुष्यी) भी दो प्रकार के बताये गये हैं-मध्ययम और अधम ।उनमें मध्य म मनुष्यि अधम की अपेक्षा श्रेष्ठय हैं; क्योंेकि वे जाति-धर्मको धारण करते हैं । मध्यरम मनुष्यर दो प्रकार के कहे गये हैं –धर्मज्ञ और धर्मसे अनभिज्ञ । इनमे धर्मज्ञ ही श्रेष्ठ् हैं; क्योंोकि वे कर्तव्‍य और अकर्त्तव्य का विवेक रखते और कर्त्तव्यि का पालन करते हैं । धर्मज्ञों के भी दो भेद कहे गये हैं-वेदज्ञ और अवेदज्ञ । इनमें वेदज्ञ श्रेष्ठ। हैं; क्यों कि उन्हीं में वेद प्रतिष्ठित है । वेदज्ञ भी दो प्रकारके बताये गये हैं-प्रवक्ताि और अप्रवक्ता । इनमें प्रवक्ताय (प्रवचन करनेवाले) श्रेष्ठत हैं; क्यों कि वे वेद में बताये हुए सम्पू्र्ण धर्मों को धारण करनेवाले होते हैं । एवं उन्हींू के द्वारा धर्म, कर्म और फलों सहित वेदों का ज्ञान दूसरों को होता है । धर्मसहित सम्पूकर्ण वेद प्रवक्ता ओं के ही मुख से प्रकट होते हैं । प्रवक्ताे भी दो प्रकार के कहे गये हैं-आत्मनज्ञ और अनात्महज्ञ । इनमें आत्मरज्ञ पुरूष ही श्रेष्ठे हैं; क्योंतकि वे जन्मू और मृत्युै के तत्वे को समझते हैं । जो प्रवृत्ति और निवृत्तिरूप दो प्रकार के धर्म को जानता हैं, वही सर्वज्ञ, सर्ववेत्ता, त्यातगी, सत्य संकल्प्,सत्य२वादी, पवित्र और समर्थ होता है । जो शब्दिब्रह्रा (वेद) में पारंगत होकर परब्रह्रा के तत्वर का निश्च य कर चुका है और सदा ब्रह्राज्ञान में ही स्थित रहता है, उसे ही देवतालोग ब्राह्राण मानते हैं । बेटा ! जो लोग ज्ञानवान् होकर बाहर और भीतर व्यातप्तं अधियज्ञ(परमात्माज) और अधिदैव (पुरूष) का साक्षात्कांर कर लेते हैं, वे ही देवता और वे ही द्विज हैं । उन्हींक में यह सारा विश्वै, सम्पूतर्ण जगत् प्रतिष्ठित है । उनके माहात्य् ीतकी कहीं कोई तुलना नहीं है । वे जन्म , मृत्युह और कर्मकी सीमा को भलीभॉति लॉघकर समस्तह चतुर्विध प्राणियों के अधीश्वलर एवं स्वीयम्भू् होते हैं ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्त‍र्गत मोक्षधर्मपर्व में शुक देव का अनुप्रश्नतविषयक दो सौ सैत्तीसवॉ अध्याकय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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