महाभारत आदि पर्व अध्याय 194 श्लोक 16-33

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चतुर्नवत्‍सधिकशततम (194) अध्‍याय: आदि पर्व (वैवाहिक पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: चतुर्नवत्‍सधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 16-33 का हिन्दी अनुवाद


कुन्‍ती कुमार के मुख से वह सारा समाचार सुनकर वक्‍ताओं में श्रेष्‍ठ महाराज द्रुपद ने उस समय राजा युधिष्ठिर को आश्‍वासन दिया। साथ ही उन्‍होंने यह प्रतिज्ञा भी कि ‘हम तुम्‍हें तुम्‍हारा राज्‍य दिलवाकर रहेंगे’ । राजन् ! तत्‍पश्‍चात् कुन्‍ती, कृष्‍णा, युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव राजा द्रुपद के द्वारा निर्दिष्‍ट किये हुए विशाल भवन में गये और यज्ञसेन (द्रुपद) से सम्‍मानित हो वहीं रहने लगे। इस प्रकार विश्‍वास जम जाने पर महाराज द्रुपद ने अपने पुत्रों के साथ जाकर युधिष्ठिर से कहा- ‘ये कुरुकुल को आनन्दित करने वाला महाबाहु अर्जुन आज के पुण्‍यमय दिवस में मेरी पुत्री का विधि‍पूर्वक पाणिग्रहण करें और (अपने कुलोचित) मंगलाचार का पालन प्रारम्‍भ कर दें। वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जब धर्मात्‍मा राजा युधिष्ठिर ने उनसे कहा- ‘राजन् ! विवाह तो मेरा भी करना होगा’। द्रुपद बोले- वीर ! तब आप ही विधि‍पूर्वक मेरी पुत्री का पाणिग्रहण करें अथवा आप अपने भाइयों में से जिसके साथ आप चाहें, उसी के साथ कृष्‍णा को विवाह की आज्ञा दे दें ।युधिष्ठिर ने कहा- राजन् ! द्रौपदी तो हम सभी भाइयों की पटरानी होगी। मेरी माता ने पहले हम सब लोगों को ऐसी ही आज्ञा दे रखी है। मैं तथा पाण्‍डव भीमसेन भी अभी तक अविवाहित हैं और आपकी इस रत्‍नस्‍वरुपा कन्‍या को अर्जुन ने जीता है। महाराज ! हम लोगों में यह शर्त हो चुकी है कि रत्‍न को हम सब लोग बांटकर एक साथ उपभोग करेंगे। नृपशिरोमणे ! हम अपनी उस (पुरानी) शर्त को छोड़ना या तोड़ना (नहीं चाहते) । अत: कृष्‍ण धर्म के अनुसार हम सभी की महारानी होगी। इसलिये वह प्रज्‍वलित अग्नि के सामने क्रमश: हम सबका पाणिग्रहण करे। द्रुपद बोले- ‘कुरुनन्‍दन ! एक राजा की बहुत-सी रानियां (अथवा एक पुरुष की अनेक स्त्रियां) हों, ऐसा विधान तो वेदों में देखा गया है; परंतु एक स्‍त्री के अनेक पुरुष पति हो; ऐसा कहीं सुनने में नहीं आया है[१]। तुम धर्म के ज्ञाता और पवित्र हो, अत: तुम्‍हें लोक और वेद के विरुद्ध यह अधर्म नहीं करना चाहिये। तुम कुन्‍ती के पुत्र हो; तुम्‍हारी बुद्धि ऐसी क्‍यों हो रही है ? युधिष्ठिर ने कहा- महाराज ! धर्म का स्‍वरुप अत्‍यन्‍त सुक्ष्‍म है, हम उसकी गति को नहीं जानते। पूर्वकाल के प्रचेता आदि जिस मार्ग से गये हैं, उसी का हमलोग क्रमश: अनुसरण करते हैं । मेरी वाणी कभी झूठ नहीं बोलती और मेरी बुद्धि भी कभी अधर्म में नहीं लगती। हमारी माता ने हमें ऐसा ही करने की आज्ञा दी है और मेरे मन में भी यही ठीक जंचा है।। राजन् ! यह अटल धर्म है। आप बिना किसी सोच विचार के इसका पालन करें। पृथ्‍वीपते ! आपको इस विषय में किसी प्रकार की आंशका नहीं होनी चाहिये । द्रुपद बोले- कुन्‍तीनन्‍दन ! तुम, कुन्‍ती देवी और मेरा पुत्र धृष्‍टद्युम्‍न –ये सब लोग मिलकर यह निश्‍चय करके बतायें कि क्‍या करना चाहिये ? उसे ही कल ठीक समय पर हम लोग करेंगे। वैशम्‍पायनजी कहते हैं- भारत ! तदनन्‍तर वे सब लोग मिलकर इस विषय में सलाह करने लगे। राजन् ! इसी समय भगवान् वेदव्‍यास वहां अकस्‍मात् आ पहुंचे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के वैवाहिक पर्व में वेदव्‍यास के आगमन से सम्‍बन्‍ध रखनेवाला एक सौ चौरानबेवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इस विषय में यह श्रुति का वचन प्रसिद्ध है-एकत्‍य बह्व्‍यो जाया भवन्ति, नेकस्‍यै बहव: सहपतय:’ अर्थात् एक पुरुष की बहुत-सी स्त्रियां होती हैं, किंतु एक स्‍त्री के लिये बहुत-से प‍ति नहीं होते

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