महाभारत आदि पर्व अध्याय 193 श्लोक 1-15
त्रिनवत्यधिकशततम (193) अध्याय: आदि पर्व (वैवाहिक पर्व)
पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद के घर में जाकर सम्मानित होना और राजा द्रुपद द्वारा पाण्डवों के शील स्वभाव की परीक्षा
दूत बोला- महाराज द्रुपद ने विवाह के निमित्त बरातियों को जिमाने के लिये उत्तम भोजन सामग्री तैयार करायी है। अत: आप लोग सम्पूर्ण दैनिक कार्यो से निवृत हो उसे पायें। राजकुमारी कृष्णा को भी विवाह विधि से वहीं प्राप्त करें। इसमें विलम्ब नहीं करना चाहिये। ये सुवर्णमय कमलों से सुशोभित तथा राजाओं की सवारी के योग्य विचित्र रथ खड़े हैं, इनमें उत्तम घोड़े जुते हुए हैं, इन पर सवार हो आप सब लोग महाराज द्रुपद के महल में पधारें। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! वहां वे सभी कुरुश्रेष्ठ पाण्डव पुरोहितजी को विदा करके उन विशाल रथों पर आरुढ़ हो (राजभवन की ओर) चले। उस समय कुन्ती और कृष्णा एक साथ एक ही सवारी पर बैठी हुई थी । भारत ! उस समय धर्मराज युधिष्ठिर ने जो बातें कही थीं, उन्हें पुरोहित मुख से सुनकर उन कुरुश्रेष्ठ वीरों के शीलस्वभाव की परीक्षा के लिये द्रुपद ने अनेक प्रकार की वस्तुओं का संग्रह किया। राजन् ! (सब प्रकार के) फल, सुन्दर ढंग से बनायी हुई मालाएं, कवच, ढाल, आसन, गौएं, रस्सियां, बीज एवं खेती के अन्य सामान तथा अन्य कारीगरियों के सब सामान पूर्णरुप से वहां संगृहित किये गये थे। इसके सिवा, खेल के लिये जो आवश्यक वस्तुएं होती हैं, उन सबको राजा द्रुपद ने वहां जुटाकर रक्खा था। दूसरी ओर कवच, चमकती हुई ढालें, तलवारें, बड़े-बड़े विचित्र घोड़े तथा रथ, श्रेष्ठ धनुष, विचित्र बाण सुवर्ण-भुषित शक्तियां एवं ॠष्टियां, प्रास, भुशुण्डियां, फरसे तथा सब प्रकार की युद्धसामग्री, उत्तम वस्तुओं से युक्त शय्या-आसन और नाना प्रकार के वस्त्र भी वहां संग्रह करके रक्खे गये थे। कुन्ती देवी सती साध्वी कृष्णा को साथ ले द्रुपद के रनिवास में गयीं। वहां की उदार ह्रदया स्त्रियों ने कौरवराज पाण्डु की धर्मपत्नी का (बड़ा) आदर-सत्कार किया । राजन् ! पाण्डवों की चाल-ढाल सिंह के समान पराक्रम सूचक थी, उनकी आंखे सांड़के के समान बड़ी-बड़ी थीं, उन्होंने काले मृगचर्म के ही दुपटटे ओढ़ रक्खे थे, उनकी हंसली की हड्डियां मांस से छिपी हुई थीं और भुजाएं नागराज के शरीर के समान मोटी एवं विशाल थीं। उन पुरुष सिंह पाण्डवों को देखकर राजा द्रुपद, उनके सभी पुत्र, मन्त्री, इष्ट मित्र और समस्त नौकर चाकर ये सब के सब वहां बड़े ही प्रसन्न हुए । वे नरश्रेष्ठ वीर पाण्डव वहां लगे हुए पादपों सहित बहुमूल्य श्रेष्ठ सिंहासनों पर बिना किसी हिचक या संकोच के मन में तनिक भी विस्मय न करते हुए बड़े-छोटे के क्रम से जा बैठे। तब स्वच्छ और सुन्दर पोशाक पहिने हुए दास-दासी तथा रसोइयें ने सोने-चांदी के बरतनों में राजाओं के भोजन करने योग्य अनेक प्रकार की सामान्य और विशेष भोजन सामग्री लाकर परोसी। मनुष्यों ने श्रेष्ठ पाण्डव वहां अपनी रुचि के अनुसार उन सब वस्तुओं को खाकर बहुत अधिक प्रसन्न हुए । राजन् ! (तदनन्तर वहां संग्रह की हुई अन्य) सब वैभव भोग की सामग्रियों को छोड़कर वे वीर पहले उसी स्थान पर गये, जहां युद्ध की सामग्रियां रक्खी गयी थीं। जनमेजय ! यह सब देखकर राजा द्रुपद, राजकुमार और सभी प्रधान मन्त्री बड़े प्रसन्न हुए और उनके पास जाकर उन्होंने अपने मन में यही निश्चय किया कि ये राजकुमार कुन्तीदेवी के ही पुत्र हैं।
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