महाभारत वन पर्व अध्याय 65 श्लोक 70-76
पञ्चाचषष्टितम (65) अध्याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)
‘मैं अपने पति की खोज के लिये केवल ब्राह्मणों से मिल सकती हूं। यदि यहां ऐसी व्यवस्था हो सके तो निश्चय ही आपके निकट निवास करूंगी। इसमें संशय नहीं हैं। ‘यदि इसके विपरित कोई बात हो तो कहीं तो रहने का मेरे मन में संकल्प नहीं हो सकता ।’ यह सुनकर राजमाता प्रसन्नचित्त होकर उससे बोली-‘बेटी ! मैं यह सब करूंगी। सौभाग्य की बात है कि तुम्हारा व्रत ऐसा उत्तम है।’ राजा युधिष्ठिर ! दमयन्ती से ऐसा कहकर राजमाता अपनी पुत्री सुनन्दा से बोली-‘सुनन्दे ! इस सैरन्ध्री को तुम देवीस्वरूपा समझो। ‘यह अवस्था में तुम्हारे समान है, अतः तुम्हारी सखी होकर रहे। तुम इसके साथ सदा प्रसन्नचित एवं आनंदमग्न रहो’। तब सखियों से घिरी हुई सुनन्दा अत्यन्त हषोल्लास में भरकर दमयन्ती को साथ ले अपने भवन में आयी। सुनन्दा दमयन्ती के इच्छानुसार सब प्रकार की व्यवस्था करके उसे बड़े आदर-सत्कार के साथ रखने लगी। इससे दमयन्ती को बड़ी प्रसन्नता हुई और वह वहां उद्वेगरहित हो रहने लगी।
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