महाभारत वन पर्व अध्याय 74 श्लोक 19-31

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चतुःसप्ततितम (74) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: चतुःसप्ततितम अध्याय: श्लोक 19-31 का हिन्दी अनुवाद

‘उसे तुमने जिस अवस्था में देखा था, उसी अवस्था में वह आज भी है और तुम्हारे आगमन की प्रतिश्रा कर रही है। आधे वस्त्र से अपने शरीर को ढक्कर वह युवती दिन-रात तुम्हारी विरहाग्नि जल रही है। ‘वीर भूमिपाल ! सदा तुम्हारे शोक से रोती हुई अपनी उसी प्यारी पत्नीपर पुनः कृपा करो और मेरी बात का उत्तर दो’। ‘महामते ! ब्राह्मण के मुख से यह वचन सुनकर पहले आपने जो उत्तर दिया था, उसी को वैदर्भी आपके मुंह से पुनः सुनना चाहती हैं। बृहदश्व मुनि कहते हैं-युधिष्ठिर ! केशिनी के ऐसा कहने पर राजा नल के हृदय में बड़ी वेदना हुई । उनकी दोनों आंखें आंसुओं से भर गयी। निषधनरेश शोकाग्नि से दग्ध हो रहे थे, तो भी उन्होंने अपने दुःख के वेग को रोककर अश्रुगद्गद वाणी में पुनः यों कहना आरम्भ किया। बाहुक बोला-उत्तम कुल की स्त्रियां बड़े भारी संकट में पड़कर भी स्वयं अपनी रक्षा करती हैं। ऐसा करके वे स्वर्ग और सत्य दोनों पर विजय पा लेती हैं, इसमें संशय नहीं है। श्रेष्ठ नारियां अपने पतियों के परित्यक्त होने पर भी कभी क्रोध नहीं करती। वे सदा सदाचाररूपी कवच से आवृत प्राणी को धारण करती हैं। वह पुरूष बड़े संकट में था तथा सुख के साधनों से वंचित होकर किंकर्तव्यविमूढ़ हा गया था। ऐसी दशा में यदि उसने अपनी पत्नी का परित्याग किया है, तो इसके लिये पत्नी को उसपर क्रोध नहीं करना चाहिये। पति ने उसका सत्कार किया हो या असत्कार ; उसे चाहिये कि पति को वैसे संकट में पड़ा देखकर उसे क्षमा कर दे; क्योंकि वह राज्य और लक्ष्मी से वंचित हो भूख से पीडि़त एवं विपत्ति के अथाह सागर में डूबा हुआ था। इस प्रकार पूवोक्त बातें कहते हुए नल का मन अत्यन्त उदास हो गया। भारत ! वे अपने उमड़ते हुए आंसुओं को रोक न सके तथा रोने लगे। तदनन्तर केशिनी ने भीतर जाकर दमयन्ती से यह सब निवेदन किया। उसने बाहुक की कहीं हुई सारी बातों और उसके मनोविकरों को भी यथावत् कह सुनाया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्र्तगत नलोपाख्यानपर्व में नल-केशिनीसंवादविषयक चैहत्तरवा अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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