महाभारत आदि पर्व अध्याय 137 श्लोक 19-34

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:४२, १५ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==सप्तत्रिंशदधिकशततम (137) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सप्तत्रिंशदधिकशततम (137) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: >सप्तत्रिंशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 19-34 का हिन्दी अनुवाद

उस समय दुर्योधन, विकर्ण, सुबाहु, दीर्घलोचन और दु:शासन बड़े क्रोध में भरकर बाणों की वर्षा करने लगे। भारत ! युद्ध में परास्‍त न होने वाले महान् धनुर्धर द्रुपद ने अत्‍यन्‍त घायल होकर तत्‍काल हो उन सबकी सेनाओं को अत्‍यन्‍त पीड़ित कर दिया। वे अलातचक्र की भांति सब ओर घूमकर दुर्योधन, विकर्ण, महाबली कर्ण, अनेक वीर राजकुमार तथा उनकी विविध सेनाओं को बाणों से तृप्त करने लगे । उन्‍होंने दु:शासन को दस, विकर्ण को बीस तथा शकुनि को अत्‍यन्‍त तीखे तीस मर्मभेदी बाण मारकर घायल कर दिया। तत्‍पश्चात् शत्रुदमन द्रुपद ने कर्ण और दुर्योधन के सम्‍पूर्ण अंगों की संधियों में पृथक-पृथक अट्ठाईस बाण मारे। सुबाहु को पांच बाणों से घायल करके अन्‍य योद्धाओं को भी अनेक प्रकार के सायकों द्वारा सहसा बींध डाला और तब बड़े जोर से सिंहनाद किया। इस प्रकार क्रोध पूर्वक गर्जना करके सम्‍पूर्ण शहस्त्रधरियों में श्रेष्ठ पाञ्चालराज द्रुपद ने शत्रुओं के धनुष, रथ, घोड़े तथा रंग-विरंगी ध्‍वजाओं को भी काट दिया। तत्‍पश्चात् सारे पाञ्चाल सैनिक सिंह समूह के समान गर्जना करने लगे। फि‍र तो उस नगर के सभी निवासी कौरवों पर टूट पड़े और बरसने वाले बादलों की भांति उन पर मूसल एवं डंडों की वर्षा करने लगे । उस समय बालक से लेकर बुढ़े तक सभी पुरवासी कौरवों का सामना कर रहे थे। जनमेजय ! गुप्तचरों के मुख से यह समाचार सुनकर कि वहां तुमुल युद्ध हो रहा है, कौरव वहां नहीं के बराबर हो गये हैं, पाञ्चालराज द्रुपद के बाणों से कर्ण के सम्‍पूर्ण अंग क्षत-विक्षत हो गये, वह भयभीत हो रथ से कूद कर भाग चला है तथा कौरव-सैनिक चीखने-चिल्‍लाते और कराहते हुए हम पाण्‍डवों की ओर भागते आ रहे हैं; पाण्‍डव लोग पीड़ित सैनिकों का रोमाञ्चकारी आर्तनाद कान में पड़ते ही आचार्य द्रोण को प्रणाम करके रथों पर जा बैठे और वहां से चल दिये। अर्जुन ने पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर को यह कहकर रोक दिया कि ‘आप युद्ध न कीजिये’ । उस समय अर्जुन ने माद्री कुमार नकुल और सहदेव को अपने रथ के पहियों का रक्षक बनाया, भीमसेन सदा गदा हाथ में लेकर सेना के आगे-आगे चलते थे । तब शत्रुओं का सिंहनाद सुनकर भाइयों सहित निष्‍पाप अर्जुन रथ की घरघराहट से सम्‍पूर्ण दिशाओं को प्रतिध्‍वनित करते हुए बड़े वेग से आगे बढ़े । पाञ्चालों की सेना उत्ताल तरंगो वाले विक्षुब्‍ध महासागर की भांति गर्जना कर र‍ही थी। महाबाहु भीमसेन दण्‍डपाणि यमराज की भांति उस विशाल सेना में घुस गये, ठीक उसी तरह जैसे समुद्र में मगर प्रवेश करता है। गदाधारी भीम स्‍वयं हाथियों की सेना पर टूट पड़े । कुन्‍ती कुमार भीम युद्ध में कुशल तो ये ही, बाहुबल में भी उनकी समानता करने वाला कोई नहीं था। उन्‍होंने कालरूप धारण कर गदा की मार से उस गज सेना का संहार आरम्‍भ किया । भीमसेन की गदा से मस्‍तक फट जाने के कारण वे पर्वतों के समान विशालकाय गजराज लोहू के झरने बहाते हुए वज्र के आघात से (पंख कटे हुए) पहाड़ों की भांति पृथ्‍वी पर गिर पड़ते थे। अर्जुन के बड़े भाई पाण्‍डु नन्‍दन भीम ने हाथियों, घोड़ों एवं रथों को धराशायी कर दिया। पैदलों तथा रथियों का संहार कर डाला। जैसे ग्‍वाला वन में डंडे से पशुओं को हांकता है, उसी प्रकार भीमसेन रथियों और हाथियों को खदेड़ते हुए उनका पीछा करने लगे ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।