महाभारत वन पर्व अध्याय 83 श्लोक 170-195

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त्र्यशीतितम (83) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

महाभारत: वन पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 170-195 का हिन्दी अनुवाद

कुरूश्रेष्ठ ! महाराज ! वहां रूद्रपत्नी दुर्गाजी का स्थान भी है। उस देवी के निकट जाने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता। महाराज ! वहीं विश्वनाथ उमावल्लभ महादेवजी का स्थान है। वहां की यात्रा करके मनुष्य सब पापों से छूट जाता है। शत्रुदमन महाराज ! पद्यनाथ भगवान् नारायण के निकट जाकर (उनका दर्शन करके) मनुष्य तेजस्वी रूप धारण करके भगवान् विष्णु के लोक में जाता है। पुरूषरत्न ! सब देवताओं के तीथों में स्नान करके मनुष्य सब दुःखों से मुक्त हो चन्द्रमा के समान प्रकाशित होता है। नरेश्वर ! तदनन्तर तीर्थसेवी पुरूष स्वस्तिपुर में जाय, उनकी परिक्रमा करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है।। तत्पश्चात् पावनतीर्थ में जाकर देवताओं और पितरों का तर्पण करे। भारत ! ऐसा करनेवाले पुरूष को अग्निष्टोमयज्ञ का फल मिलता है। भरतश्रेष्ठ ! वहीं गंगाह्रद नामक कूप है। भूपाल ! उस कूप में तीन करोड़ तीर्थों का वास है। राजन् ! उसमें स्नान करके मानव स्वर्गलोक में जाता है। जो मनुष्य आपगा में स्नान करके महादेवजी की पूजा करता है, वह गणपति पद पाता और अपने कुल का उद्धार कर देता है। तदनन्तर बहरीपाचन नाम से प्रसिद्ध वरिष्ठ के आश्रमपर जय और वहां तीन राज उपवासपूर्वक रहकर बेर का फल खाय। जो मनुष्य वहां बारह वर्षोतक भलीभांति त्रिरात्रोपवासपूर्वक बेर का फल खाता है, वह उन्हीं वरिष्ठ के समान होता है। राजन् ! नरेश्वर ! तीर्थसेवी मनुष्य रूद्रमार्ग में जाकर एक दिन-रात उपवास करे। इससे वह इन्द्रलोक में प्रतिष्ठित होता है। तदनन्तर एकरात्रतीर्थ में जाकर मनुष्य नियमपूर्वक और सत्यवादी होकर एक रात निवास करने पर ब्रह्मलोक में पूजित होता है। राजेन्द्र ! तत्पश्चात् उस त्रैलोक्विख्यात तीर्थ में जाय, जहां तेजोराशि महात्मा सूर्य का आश्रम है। उसमें स्नान करके सूर्यदेव की पूजा करने से मनुष्य सूर्य के लोक में जाता और अपने कुल का उद्धार करता है। नरेश्वर ! सोमतीर्थ में स्नान करके तीर्थसेवी मानव सोमलोक को प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है। धर्मज्ञ राजन् ! तदनन्तर महात्मा दधीच के लोकविख्यात परम पुण्यमय, पावन तीर्थ की यात्रा करे। जहां तपस्या के भण्डार सरस्वती पुत्र अंगिराक जन्म हुआ। उस तीर्थ में स्नान करने से मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है और सरस्वती लोक को प्राप्त होता है, इसमें संशय नहीं है। तदनन्तर नियमपूर्वक रहकर ब्रह्मचर्य पालन करते हुए कन्याश्रम तीर्थ में जाय। राजन् ! वहां तीन रात उपवास करते नियमपूर्वक नियमित भोजन करने से सौ दिव्य कन्याओं की प्राप्ति होती है और वह मनुष्य स्वर्गलोक में जाता है। धर्मज्ञ ! तदनन्तर वहां से संनिहतीतीर्थ की यात्रा करे।। उस तीर्थ में ब्रह्मा आदि देवता और तपोधन महर्षि प्रतिमास महान् पुण्य से सम्पन्न होकर जाते हैं। सूर्यग्रहण के समय संनिहती में स्नान करने से सौ अश्वमेध यज्ञों अभीष्ट एवं शास्वत फल प्राप्त होता है। पृथ्वी पर और आकाश में जितने तीर्थ, नदी, ह्रद, तड़ाग, सम्पूर्ण झरने, उदपान, बावली, तीर्थ और मंदिर हैं, वे प्रत्येक मास की अमास्या को संनिहती में अवश्य पधारेंगे। तीथों का संघात या समूह होने के कारण ही वह संनिहती नाम से विख्यात है। राजन् ! उसमें स्नान और जलपान करके मनुष्य स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो सूर्यग्रहण के समय अमावस्या को वहां पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पुण्यफल का वर्णन सुनो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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