महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 42 श्लोक 35-46

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द्विचत्वारिंश (42) अधयाय: उद्योग पर्व (सनत्सुजात पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: द्विचत्वारिंश अधयाय: श्लोक 35-46 का हिन्दी अनुवाद

इस प्रकार जो भेदशून्य, चिह्नरहित, अविचल, शुद्ध एवं सब प्रकार के द्वैत से रहित आत्मा है, उसके स्वरूप को जानने वाला कौन ब्रह्मवेत्ता पुरूष उसका हनन (अध:पतन) करना चाहेगा? इसलिये उपर्युक्त रूप से जीवन बिताने वाला क्षत्रिय भी ब्रह्म के स्वरूप का अनुभव करता है तथा ब्रह्म को प्राप्त होता है। जो उक्त प्रकार से वर्तमान आत्मा को उसके विपरीत रूप से समझता है, आत्मा का अपहरण करने वाले उस चोर ने कौन-सा पाप नहीं किया? जो कर्तव्य-पालन में कभी थकता नहीं, दान नहीं लेता, सत्पुरूषों में सम्मानित और उपद्रवरहित है तथा शिष्‍ट होकर भी शिष्‍टता का विज्ञापन नहीं करता, वही ब्राह्मण ब्रह्मवेत्ता एवं विद्वान् है। जो लौकिक धन की दृष्टि से निर्धन होकर भी दैवी सम्पत्ति तथा यज्ञ-उपासना आदि से सम्पन्न हैं, वे दुर्धर्ष हैं और किसी भी विषय से चलायमान नहीं होते। उन्हें ब्रह्म की साक्षात् मूर्ति समझना चाहिये। यदि कोई इस लोक में अभीष्‍ट सिद्ध करने वाले सम्पूर्ण देवताओं को जान ले, तो भी वह ब्रह्मवेत्ता के समान नहीं होता; क्योंकि वह तो अभीष्‍ट फल की सिद्धि के लिये ही प्रयत्न कर रहा है। जो दूसरों से सम्मान पाकर भी अभिमान न करे और सम्माननीय पुरूष को देखकर जले नहीं तथा प्रयत्न न करने पर भी विद्वान् लोग जिसे आदर दें, वही वास्तव में सम्मानिय है। जगत् में जब विद्वान् पुरूष आदर दें, तब सम्मानित व्यक्ति को ऐसा मानना चाहिये कि आंखों को खोलने-मीचने के समान अच्छे लोगों की यह स्वाभाविक वृत्ति है, जो आदर देते हैं।
किंतु इस संसार में जो अधर्म में निपुण, छल-कपट में चतुर और माननीय पुरूषों का अपमान करने वाले मूढ़ मनुष्‍य है, वे आदरणीय व्यक्तियों का भी आदर नहीं करते। यह निश्चित है कि मान और मौन सदा एक साथ नहीं रहते; क्योंकि मान से इस लोक में सुख मिलता है और मौन से परलोक में। ज्ञानीजन इस बात को जानते हैं। राजन्! लोक में ऐश्र्वर्यरूपा लक्ष्‍मी सुख का घर मानी गयी है, पर वह भी (कल्याणमार्ग में) लुटेरों की भांति विघ्‍न डालने वाली है; किंतु ब्रह्मज्ञानमयी लक्ष्‍मी प्रज्ञाहीन मनुष्‍य के लिये सर्वथा दुर्लभ है ।।४५।। संत पुरूष यहां उस ब्रह्मज्ञानमयी लक्ष्‍मी की प्राप्ति के अनेकों द्वार बतलाते हैं, जो कि मोह को जगाने वाले नहीं हैं तथा जिनको कठिनता से धारण किया जाता है। उनके नाम हैं- सत्य, सरलता, लज्जा, दम, शौच और विद्या।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गतसनत्सुजातपर्व में बयालीसवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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