महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 54 श्लोक 1-14

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चतु:पञ्चाशत्तम (54) अधयाय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: चतु:पञ्चाशत्तम अधयाय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

संजय का धृतराष्‍ट्र को उनके दोष बताते हुए दुर्योधन पर शासन करने की सलाह देना

संजय ने कहा-महाराज! आप जैसा कह रहे हैं, वही ठीक है। भारत! युद्ध में तो गाण्‍डीव धनुष के द्वारा क्षत्रिय-समुदाय का विनाश ही दिखायी देता है। परंतु सदा से बुद्धिमान् मान जाने वाले आपके संबंध में मैं यह नहीं समझ पाता हूं कि आप सव्‍याची अर्जुन के बल-पराक्रम को अच्‍छी तरह जानते हुए भी क्‍यों अपने पुत्रों के अधीन हो रहे हैं? भरतकुलभुषण महाराज! आप (स्‍वभाव से ही) पाण्‍डवों का अपराध करने वाले हैं। इस कारण इस समय आपके द्वारा जो विचार वयक्‍त किया गया है, यह सदा स्थिर रहने वाला नहीं है। आपने आरम्‍भ से ही कुंती पुत्रों के साथ कपटूपर्ण बर्ताव किया है। जो पिता के पर पर प्रतिष्ठित है, श्रेष्‍ठ सुहृद है और मन-में भली-भांति सावधानी रखने वाला है, उसे अपने आश्रितों का हित-साधन ही करना चाहिये। द्रोह रखने वाला पुरूष पिता अथवा गुरूजन नहीं कहला सकता। महाराज! द्यूतक्रीड़ा के समय जब आप अपने पुत्रों के मुख से सुनते कि यह जीता, यह पाया तथा पाण्‍डवों की पराजय हो रही है, तब आप बालकों की तरह मुसकरा उठते थे। उस समयस पाण्‍डवों के प्रति कितनी ही कठोर बातें कही जा रही थीं, परंतु मेरे पुत्र सारा राज्‍य जीतते चले जा रहे हैं, यह जानकर आप उनकी उपेक्षा करते जाते थे। यह सब इनके भावी विनाश या पतन का कारण होगा, इसकी ओर आपकी दृष्टि नहीं जाती थी। महाराज! कुरूजांगल देश ही आपका पैतृक राज्‍य है, किंतु शेष सारी पृथ्‍वी उन वीर पाण्‍डवों ने ही जीती है, जिसे आप पा गये हैं।
नृपश्रेष्‍ठ! कुंतीपुत्रों ने अपने बाहुबल से जीतकर यह भूमि आपकी सेवा में समर्पित की है, परंतु आप उसे अपनी जीती मानते हैं। राजशिरोमणे! (घोषयात्रा के समय) गन्‍धर्वराज चित्रसेन ने आपके पुत्रों को कैद कर लिया थ। वे सब-के-सब बिना नावे के पानी में डू‍ब रहे थे, उस समय उन्‍हें अर्जुन ही पुन: छुड़ाकर ले आये थे। राजन्! पाण्‍डव लोग जब द्यूतक्रीड़ा में छले गये और हारकर वन में जाने लगे, उस समय आप बच्‍चों की तरह बांरबार मुसकराकर अपनी प्रसन्‍नता प्रकट कर रहे थे। जब अर्जुन असंख्‍य तीखे बाण समूहों की वर्षा करने लगेंगे, उस समय समुद्र भी सूख जा सकते हैं, फिर हाड़-मांस के शरीर से पैदा हुए प्राणियों की तो बात ही क्‍या है? बाण चलाने वाले वीरों में अर्जुन श्रेष्‍ठ हैं, धनुषों में गाण्‍डीव उत्‍तम है, समस्‍त प्राणियों में भगवान् श्रीकृष्‍ण श्रेष्‍ठ हैं, आयुधों में सुदर्शन चक्र श्रेष्‍ठ है और पताका वाले ध्‍वजों में वानर में उपलक्षित ध्‍वज ही श्रेष्‍ठ एवं प्रकाशमान है। राजन्! इस प्रकार इन सभी श्रेष्‍ठतम वस्‍तुओं को अपने साथ लिये हुए जब श्‍वेत घोडों वाले अर्जुन रथ पर आरूढ़ हो रणभूमि में उपस्थित होंगे, उस समय ऊपर उठे हुए कालचक्र के समान वे हम सब लोगों का संहार कर डालेंगे। राजाओं में श्रेष्‍ठ भरतभूषण महाराज! अब तो यह सारी पृथ्‍वी उसी के अधिकार में रहेगी, जिसकी ओर से भीमसेन और अर्जुन-जैसे योद्धा लड़ने वाले होंगे। वही राजा होगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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